विख्यात उपन्यासकार असगर वजाहत की सचित्र यात्रा पुस्तक 'रास्ते की तलाश में' का लोकार्पण कथाकार योगेंद्र आहुजा ने किया। इस किताब में लेखक ने 'अज़रबाईज़ान : मुस्लिम देश में हिन्दू मन्दिर', 'अण्डमान निकोबार : सोशल टूरिस्ट के नोट्स', 'कोंकण से शिमोगा तक : एक अपना विदेश' और 'मिजोरम : म्यान्मार और बांग्लादेश के बीच' आदि यात्राओं के रोचक और अद्भुत वृतांत के साथ नयनाभिराम चित्र भी प्रस्तुत किये हैं...
विमोचन के बाद श्री आहुजा ने कहा, "वजाहत की इस किताब में जिन यात्राओं का वृत्तांत है, वे अत्यंत रोमांचक हैं। ये वृत्तांत हमें अतीत की ओर ले जाकर फिर वर्तमान युग में ले आते हैं। उनकी यात्राएं सामान्य यात्राओं से अलग, कहीं-कहीं भीतरी तो कभी बाहरी यात्रा का अहसास कराती हैं।"
उन्होंने कहा, "आजकल किस्म-किस्म के टूर पैकेज की व्यवस्था है, लेकिन इन पैकेजों को अस्वीकार करते हुए एक साहित्यिक यात्री जब स्वयं अपनी पसंद की यात्रा पर निकलता है तो वह भटकता नहीं, अपने साथ पाठकों को भी सही मुकाम तक ले जाता है और बहुत कुछ अपने साथ लेकर आता है। वजाहत इन यात्राओं से कई नायाब चीजें लेकर आए हैं। इस किताब में सब के लिए कुछ न कुछ अवश्य है।"
लेखक वजाहत ने कहा, "जिस व्यक्ति में जिज्ञासाएं होती हैं, वह किसी चीज की गहराई तक जाकर सच को जानना चाहता है। अपनी इन्हीं जिज्ञासाओं के साथ मैंने कुछ यात्राएं की हैं। जहां भी गया, वहां मैंने अपने समय, समाज और देश को समझने की कोशिश की। इसमें मैं कहां तक सफल हो पाया, यह तो पाठक ही बताएंगे।"
उन्होंने कहा, "कोई पाठक मुझे अगर कमियां बताते हैं तो किसाब के अगले संस्करण मैं कमियों को दूर करने का प्रयास करता हूं।"
वरिष्ठ कथाकार और समयांतर के सम्पादक पंकज बिष्ट की किताब 'खरामा-खरामा' का लोकार्पण वरिष्ठ चिकित्सक और उनकी जीवन संगिनी ज्योत्सना त्रिवेदी ने किया। इस किताब पर सुपरिचित पत्रकारकार-कथाकार अनिल यादव ने कहा, "पंकज जी की यात्राएं कई स्तरों पर चलती रहती हैं। आस-पास की चीजों को देखने की उनकी दृष्टि सबसे अलग है।"
अपनी किताब के बारे में श्री बिष्ट ने कहा, "मैंने ये यात्राएं लगभग 40 साल में की हैं, ज्यादातर पहाड़ (उत्तराखंड) और गुजरात की। मैं जहां भी जाता हूं, वहां के भूगोल और आदमी के संबंध की तलाश करता हूं। इन यात्रा वृत्तांतों में मैंने जिंदगी के संघर्ष को पकड़ने का प्रयास किया है।"
'नगरवधुएँ अखबार नहीं पढतीं' पुस्तक से चर्चा में आए पत्रकारकार- कथाकार अनिल यादव की पूर्वोत्तर केन्द्रित यात्राओं की अद्भुत पठनीय-उल्लेखनीय किताब 'वह भी कोई देश है महराज' का लोकार्पण जाने-माने कवि-विचारक सुरेश सलिल ने किया। इस किताब पर इंदौर से आए चर्चित युवा कथाकार सत्यनारायण पटेल ने कहा, "यात्राएं ऐसी हों जो हलचल पैदा करें। यह काम अनिल यादव ने किया है। इन्होंने यात्रा वृत्तांत में जिन मुद्दों को उठाया है, वे जरूरी-बहसतलब और हलचल पैदा करने वाली हैं। काफी जोखिम उठाकर बोहेमीयन अन्दाज़ में की गई यह यात्रा हिन्दी की बडी उपलब्धी है..."
स्वयं अनिल यादव ने कहा, "ये यात्राएं मैंने 11 साल पहले की थीं। उन दिनों असम में विद्रोहियों ने 300 लोगों को बाहरी बताकर उनकी हत्या कर दी थी। इस घटना ने मुझे झकझोरा और मैंने सच को जानने के लिए यात्रा शुरू की। पूर्वोत्तर राज्यों की यात्राओं के दौरान मैं वहां के कई साहित्यकारों, पत्रकारों और आम लोगों से मिला। उन्होंने जो कुछ बताया और मैने खुद जो कुछ देखा-समझा उसी का निचोड इस किताब में है।"
सुरेश सलिल ने तीनों किताबों पर रोशनी डालते हुए यात्रा साहित्य लिखने वाले जापान के बाशो का जिक्र किया तथा राहुल सांकृत्यायन, बाबा नागार्जुन और देवेंद्र सत्यार्थी को भी याद किया।
तीनों किताबें अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। मंच संचालन और स्वागत वक्तव्य के क्रम में प्रकाशक एवं कथाकार गौरीनाथ ने इन यात्रा पुस्तकों के विषय और प्रकाशन के बाबत विस्तृत जानकारी दी और अंतिका की प्रकाशन-यात्रा के अनुभव भी सझा किया। धन्यवाद ज्ञापन करते कथाकार चरणसिन्ह पथिक ने भी इन पुस्तकों की सराहना की...यह आयोजन इतना आत्मीय और अनौपचारिक था कि यहाँ आम गोष्ठियों की परम्पराओं का लगभग निषेध था...
( संजीव स्नेही )
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