Tuesday 2 August 2011

सनगोह की याद और मिरचैया के लिए मेघ से प्रार्थना

मालूम हुआ कि पिछले कुछ दिनों से मिरचैया पलार क्षेत्र में खूब बारिस हो रही है. निश्चय ही अब भी थोड़े हरे कास बचे होंगे जो इस बरसात में पुराने दिनों के रंग भरते होंगे. लेकिन खैरों का वो विशाल वन नहीं होगा. उस खैरबन्ने को याद करने वाले जरूर हैं और वो उसको कभी कभार याद भी करते होंगे, लेकिन उस खैरबन्ने में नज़र आनेवाले सांप-सनगोह और उसके साथ जुड़े बच्चों के डर की याद किसी को शायद ही होगी!

सनगोह यूं तो सांप से कम खतरनाक जीव माना जाता, लेकिन बरसात के इस मौसम में उसकी आमद बढ़ जाती थी और एक प्रचलित डर भी था कि वह किसी को फूंक मार दे तो आदमी इतना ज़्यादा फुल जाता कि अरसे तक किसी काम का नहीं रहता. हम में से किसी को उसने कभी फूंक नहीं मारा था, लेकिन हम सांप की तरह ही उससे भी डरते थे... यूं सच पूछें तो तब उतना नहीं डरते थे जितना अब उसकी याद डरावनी लगाती है. डरते-डरते भी हम सनगोह को देखते तो उसको खदेड़ने या मारने के मौके छोड़ते नहीं थे.

हमने कई सनगोह मारे जिनमें से कई के खाल खालकर हमारे साथ का एक लड़का ले जाता था. वह लड़का उस खाल से खेजड़ी नामक एक वाद्य यंत्र बनाता था. उस खेजड़ी की मीठी आवाज़ सुन हम सनगोह के डर बिलकुल भूल जाते थे. डरावना सनगोह और उसके खाल की मीठी आवाज़ वाली खेजड़ी! क्या अब भी कोई वैसी खेजड़ी बनाता होगा?

सांप को लेकर वह डर अब भी बारिस के इस मौसम में मिरचैया पलार जाने पर ताज़ा हो जाता है, लेकिन सनगोह अब दिखाते ही कम हैं. क्या इस डर के साथ अब खेजड़ी जैसे लोक वाद्य यंत्र के ख़त्म होने का डर नहीं शुरू हो रहा है? ऐसे ढेर सारे डरों की गवाह नदी मिरचैया जो लगातार सूखती जा रही है इससे कोई क्यों नहीं डर रहा है?

इस बीच मिरचैया पलार की याद के साथ जब मुझे सनगोह की याद आई तो मैंने शब्दकोशों को खंगाला, मगर कहीं "सनगोह" शब्द नहीं मिला. गूगल पर भी खोजने का कोई परिणाम नहीं मिला. तब मुझे लगा कि हो ना हो किसी दिन मिरचैया का नाम भी ना गायब हो जाये! और अपनी पहली प्रेमिका नदी मिरचैया की यादें बचाने को मैं वेचैन हो गया... और बरसात के इस मौसम में मेघ महाराज से यह प्रार्थना करने के अलावा मेरे वश में कुछ नहीं कि,  हे मेघ!बिहार के पूर्वी इलाके में जहाँ कभी कोसी बहा करती थी और जहाँ कुछ साल पहले भी कोसी मैया तफरी करने बाढ़ का उपहार लेकर आई थी और जो मिथिला का सबसे उपेक्षित भदेस इलाका है वहां मेरी पहली और इकलौती प्रेमिका मिरचैया पानी के लिए तरस रही है, कृपा कर के तुम वहाँ खूब-खूब बरसो, जम के बरसो!....

11 comments:

  1. सदन झा के शब्दों में 'अंचल की सांस्कृतिक स्मृति'। ऐसे और पोस्ट पढ़ने की इच्छा है।

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  2. उदय प्रकाश कि कहानी (यदि में भूल नहीं रहा तो) तिरिछ कुछ ऐसे ही शुरू होती है. एकबार फिर से देखें. सन्गोइह के लिए इगुअना (iguana ) देखें.

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  3. मेरे घर के पास भी बाँस के बीटों और बरसाती डबरे के आस-पास घूमा करते थे सोनगइह। कुछ लोग इसे सोनगइह साँप भी कहते थे। कई सोनगइह को तो मेरे पिताजी ने स्वयं बरछे और शहद से मार डाले होंगे। हम भी बहुत डरते थे और जहरीली फूँक मारने से फूल कर मर जाने वाली बात पर विश्वास भी करते थे। अब उनकी तादाद निस्संदेह कम हो गई है। हालाँकि इक्के-दुक्के देखने को अवश्य मिल जाते हैं। साही की तरह उनके ऊपर भी विलुप्ति का खतरा निश्चय ही मंडरा रहा होगा। वैसे ही जैसे कई प्रकार के साँप कोसी क्षेत्र से लुप्तप्राय हो गए लगते हैं।

    सोनगइह को ताकने के लिए गौरीनाथ जी की तरह हमने भी शब्दकोशों और गूगल को खंगाला था कभी। लेकिन सदन जी की सूचना के बाद पहली बार भाँति-भाँति के दुनिया भर के सोनगइह देखने को मिल गए। इगुअना की जानकारी देने के लिए सदन जी का धन्यवाद और सोनगइह को हिंदी अंतर्जाल की दुनिया में एक सुरक्षित कोना प्रदान करने के लिए गौरीनाथ जी को भी धन्यवाद।

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  4. इस आपाधापी में हमारे गांव, खेत-खलिहान इसी तरह से पहचान खो रहें हैं; हम जैसे लोग सिर्फ दुआ ही कर सकते हैं क्योंकि कहीं ना कहीं हम ही जिम्मेदार हैं इसके; पलायन ही इसका कारण और विडंबना है;

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  5. Glad to know about the compassionate rains shower in Mirchaiyya Palar...wishing more and frequent rain for your first love/Mirchaiyya...Atul

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  6. एक बार फ़िर वही मेरा प्रिय - जिसे मैं खास गौरीनाथियन गद्य कहता हूँ|घर के आगे पोखर और बगल में गहरा खेत,दोनों अभी तक वैसे ही हैं जैसा आपने कई बार देखा है,गौरीनाथ|इन्हीं की बलिहारी कि अब भी यदा-कदा सनगोहि दिख जाता है|बगल के दालान में पहले हर एक-दो महीने पर कोई न कोई जहरीला सांप मारा जाता था जो अब नही दिखता,हरहरा का झुंड कभी-कभार दिख जाता है जिन्हें देखने के लिये मेरी बहुएं और पोता-पोती दौड़ पड़ते हैं|लेकिन ये बातें महत्वपुर्ण नही हैं|महत्वपुर्ण है यह कि आप अपनी स्मृतियों से दबे खजाने को निकालकर एक खास अंदाज मे लिपिबद्ध कर रहे हैं जो अब तक दुर्लभ था|कोशी के आंकड़ों पर शब्दजाल बिछ रहे हैं,पर इसकी आत्मा की तरफ़ झांकने की ना तो किसी को फ़ुरसत है,ना अकल|आपकी ये स्मृतियाँ एक जगह इकठ्ठी होकर साहित्य-संस्कृति की अनमोल धरोहर बनेंगी,इसे निर्बाध बढाते जाईए|मेरी अशेष शुभकामनायें|

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  7. मित्रो! आप मिरचैया पलार जैसे बीहड़ इलाके की छवि देखने-झांकने को आये, यह मेरे लिए उत्साहवर्द्धन सा है. आगे भी लगाव बनाए रखेंगे, तो बड़ा उपकार होगा. अरविन्द जी, सदन जी और शशि जी जरूर सनगोह देखे होंगे, मगर इगुअना (iguana ) के बारे में जितनी जानकारी मिलती है, मेरे ख़याल से वह अलग जानवर है. उदय प्रकाश ने "तिरिछ" कहानी में जिस तिरिछ यानी इगुअना (iguana ) की चर्चा की है सनगोह प्रजाति के वह भले हो, लेकिन आकार-प्रकार में उससे सनगोह की अपेक्षा ज़्यादा खतरनाक और विषेला बताया गया लगता है. जो भी हो, इगुअना हो या सनगोह, मेरे कहने का आशय कुछ अलग था और उससे आप लोगों ने समझा भी... यही मेरे लिए संतोष की बात है.
    आप लोगों ने मुझ जैसे अंतरजाल दुनिया के नए व्यक्ति को इतना समय दिया इसके लिए आभारी हूँ.
    आपका
    गौरीनाथ

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  8. हे मेघ!बिहार के पूर्वी इलाके में जहाँ कभी कोसी बहा करती थी और जहाँ कुछ साल पहले भी कोसी मैया तफरी करने बाढ़ का उपहार लेकर आई थी और जो मिथिला का सबसे उपेक्षित भदेस इलाका है वहां मेरी पहली और इकलौती प्रेमिका मिरचैया पानी के लिए तरस रही है, कृपा कर के तुम वहाँ खूब-खूब बरसो, जम के बरसो!....
    इससे प
    ढते हुए मेघदूत मे मेघ से की गई प्रार्थना याद आ गई...

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  9. नीक लागल ।

    मैथिलीमे रहैत तँ आओरहु नीक लगैत ।

    कल्याणी कोश (मैथिली इंग्लिश डिक्शनरी) मे "सनगोहि" अछि ।

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