Thursday 23 March 2017

यात्रा-डायरी : मोखाक माटि : गौरीनाथ

कवि कथाकार आ अग्रज मित्र केदार काननक आग्रह पर लिखल हमर एक टा यात्रा-डायरी 'मोखाक माटि’ शीर्षक सँ वर्ष 2017 मे प्रकाशित 'भारती मंडन’क ताजा अंक (अंक : 13, नव क्रमांक : 1) मे भारी आ भ्रामक गड़बड़ी संग छपबाक सूचना संपादक द्वारा काल्हि साँझ भेटल अछि। संपादक भाइ केदार काननक दूरभाष सूचनाक अनुसार, प्रूफ-टंकन आ मुद्रण मे ‘भारती मंडन’ दिस सँ भेल भयंकर गड़बड़ी आ असावधानीक कारणें ई आलेख ततेक विरूपित, विकृत आ अशुद्ध छपल अछि जे एकरा पढ़ब लेखक संग अन्याय हैत। एकरा एक टा दुर्घटना मानैतो हम व्यक्ति आ लेखक दुनू रूप मे आहत आ परेशान छी। बहुत बहुत परेशान! एहि विषम-विकट स्थिति मे हम अपन पाठक, प्रेमी, शुभचिंतक, मित्र आ अग्रज लोकनि सँ निवेदन करय चाहैत छी जे 'भारती मंडन’ मे छपल पाठ केँ खारिज कयल जाय आ ओकर संदर्भ रूप मे कतहु चर्चा नइँ कयल जाय। शुद्ध पाठ पुन: पत्रिका मे आकि पुस्तक रूप मे जाबत सामने नइँ अबैत अछि एत’ ऑनलाइन प्रस्तुत कयल जा रहल आलेखक पाठ करी, से अनुरोध।
—गौरीनाथ

23 मार्च, 2017
(शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव आ राजगुरुक शहादत दिवस पर)









यात्रा-डायरी


मोखाक माटि
(7 अगस्त सँ 31 अगस्त, 2015)


गौरीनाथ






अहाँ कोनो नीक सपना देखै छी तँ की करै छी?... सब सँ पहिने अपन खास दोस्त, मनमीत, प्रिया केँ सुनबै छी! जँ तेहन केओ तत्काल सहज उपलब्ध नइँ तँ जे केओ सहृदय, आत्मीय सन अहाँक दैनंदिन जीवनक परिधि मे बातचीत लेल उपलब्ध होइत अछि, ओकरा सुनाक’ अपना मनक उत्ताप केँ कम करैत छी। जँ तेहनो केओ नइँ तँ अहाँ नदी, गाछ-बिरिछ आकि चिड़ै-चुनमुनी केँ बहाना बनबै छी आ अपन एकांतक मीत बनि मने-मन स्वयं केँ ओ सब सुनबैत ओहि सपना मे किछु ने किछु विचार (अवचेतन मे सही) मिलबैत ओकरा एक टा नव रूप दैत छी। जँ अहाँ चित्रकार हैब तँ ओकर प्रस्तुति मे पेंटिंग्स वला किछु तत्व अबस्से औतै। फिल्मकार हैब तँ दृश्य-योजनाक संग छवि प्रस्तुत करबाक प्रयास रहत। छात्र, अध्यापक होइ अथवा साधारण मनुक्ख—अहाँक सपनाक पुनप्र्रस्तुति मे अपन व्यक्तित्वक संगहि निजी विचार-दर्शनक प्रभाव कोनो-ने-कोनो रूप मे अबस्से आओत।...

ओरहान पामुक अपन समस्त कथा-रचना केँ अपन सपनाक प्रतिरूप मानैत छथि। हुनक ई बात हमरा रुचैत अछि। हमरा लगै अछि जे कथा-उपन्यास सन रचनाक बहाने हम अपन सपने तँ बिलहै छी। अंतर दू स्तर पर अछि। एक, हम अपन हीत-मीत, दोस्त आ प्रिया सब किछु एक टा विशाल पाठक वर्ग केँ बुझैत छी। दू, जेँकि हम कथाकार-उपन्यासकार होइत छी तेँ अपन सपना केँ अहाँ धरि पहुँचाबैक क्रम मे ओहि मे बहुत किछु मिलबैत रचना केँ एक टा कला-रूप देबाक समस्त ओरिआओन करैत छी। माने लोक, समाज, इतिहास, दर्शन सँ जुड़ल अपन अनुभव-ज्ञान सँ अर्जित विचार सेहो ओहि सपना मे मिलबैत छी। फेर कहबाक लेल एक टा शिल्प गढ़’ पड़ैत अछि। हमर स्वप्न-वृतांत मे अंत-अंत धरि अहाँक रुचि, उत्सुकता आ जिज्ञासा नइँ रहत तँ कथी लेल पढ़ब? संगे महत्त्वपूर्ण ईहो जे अहाँक देश-समाजक सीमा कतेक टा अछि?हमर पाठक आ प्रेमी कखनो पासपोर्ट आ विजा नइँ देखैत अछि, तँ हम अपन नागरिकता एक देशक सीमा धरि किएक मानी? कतेको मास सँ तुर्की आ फ्रांस मे संघर्षरत छात्र आ मजदूरक पीड़ा हमरा हैदराबाद, जेएनयू, बीएचयू, पटना आ शिमलाक छात्र-छात्राक पीड़ा सँ कम व्यथित नइँ कयलक अछि। कश्मीरक पुलवामा मे लगातार कर्फ्युक बीच घुटि रहल निदा नवाजक परिजन आ अफस्पाक विरुद्ध सोलह वर्षक अनशन सँ असह्य पीड़ा सहयवाली ईरोमक दर्द हमरा अपने बंधु-बांधवक दर्द बुझाइत अछि। गोरक्षाक नाम पर जे दलित-अल्पसंख्यक मारल गेलाह, की ओ हमर केओ नइँ छलाह? सोलह दिसंबरक घाव केँ ताजा करैत जे रोज मारते बलात्कारक खबरि आबि रहल अछि—ई हमर-अहाँक सोच आ सपना संग बलात्कार नइँ थिक की? एहन विषम-विषाक्त समय मे हमरा सब केँ अपन सपना बचेबाक संगहि अपन प्रियजन धरि पहुँचेबाक लेल अनथक रोज-रोजक ओरिआओन मे लागल रह’ पड़ैत अछि। पाश कहने छलाह, 'सब सँ खतरनाक होइत अछि सपनाक मरि जायब।’ माने कथा-उपन्यासक अंत! इतिहासक अंत!... हम एहन-एहन सब अंतक विरुद्ध नव-नव सपना हेतु सुखद निन्नक ओरिआओन कर’ चाहैत छी। हम खूब-खूब काज करैत खूब-खूब थाक’ मे विश्वास रखैत छी ताकि बढिय़ा निन्न होअय आ ओहि निन्नक फसिल जे सपना हमरा भेटत तकरा अहाँ सब धरि पहुँचबैक यत्न करब।
कविक गद्य-प्रसंग अनेक बात मे एक टा ईहो कहल गेल जे 'गद्य हुनक कसौटी’ होइत छनि। कथाकार कथा-उपन्यास लिखय कि निबंध, संस्मरण, डायरी—ओकर गद्यक रूप-भिन्नता मादे जे कोन श्रेष्ठ आ निकष तकर पता हमरा नइँ। हमरा बस एतबे लगै अछि जे कथा-उपन्यास रूप मे हम अपन सपनाक एक टा कलात्मक प्रस्तुति करैत छी तँ निबंध, संस्मरण, डायरी आदि सन कथेत्तर विधा मे अपन खाँटी सपना कम सँ कम कलात्मकताक संग अहाँक सोझा रखैत छी। जेना एक कारीगर अपन कारीगरीक बलें अनेक आओर तत्वक संयोग सँ दूध सँ रसगुल्ला, पेड़ा, बर्फी सन नाना प्रकारक मिठाइ बनबैत अछि। एहि तरहक सब मिठाइक मूल मे दूध-चीनी अछि, मुदा स्वाद सभक भिन्न। हमरो कथा-उपन्यास सपनाक एहने प्रकार थिक आ कथेत्तर गद्य केसर-बादाम युक्त ताजा दूधक गिलास। एत’ जे हम अपन डायरीक पन्ना मे दर्ज किछु सपनाक टुकड़ी सब राखि रहल छी ई सब अलग-अलग दिनुका सुच्चा सपना थिक। भ’ सकैछ एहि सब मे कोनो प्रकारक रचना भ’ सकबाक संभावना रहल हैत। तेँ एकरा अहाँ सब संग साझा क’ रहल छी। एकर किछु टुकड़ी मे कथा अथवा कविताक तत्व भेटि जाय तँ ओकरा संयोग मात्र मानि, शुद्ध रूपेँ डायरी आकि यात्रा डायरी रूप मे पढ़ी, सैह हमर विनम्र अनुरोध।

—लेखक




07 अगस्त, 2015, दुपहर बाद, डिब्रूगढ़ राजधानी, नर्ई दिल्ली सँ प्रस्थान


घर सँ निकलैत काल यात्राक बैग कोंचि-कोंचि क’ भरि देला सँ तखन परेशानी होइत छै जखन बाट मे कीनल कोनो महत्त्वपूर्ण चीज रखबाक गुंजाइश नइँ बचै छै। भूख कनेको नइँ होअय आ फूड फेस्टिवल मे जाउ, तँ की स्वाद पायब! एहिना होइत छै जखन कोनो यात्रा पर जाइ सँ पहिने ओहि संदर्भ-प्रसंग सँ जुड़ल मारते रास बात दिमाग मे जमा भ’ गेल होअय तँ।... नेल-पॉलिश धरि लगेबा सँ पहिने स्त्रीगण नीक सँ न’ह साफ करैत छथि। आ एक हम छी जे कतहुक यात्रा पर बहराइ सँ पहिने अपन दिमागक झाड़-पोछ जरूरी नइँ बुझै छी।...
जत’क हम मूल वासी छी तत’ जा रहल छी यात्री बनि। हमरा कोसी आ कोसी परिसर एक बेर नव तरहेँ देखबा आ महसूस करबाक मन भेल। कोनो बेजाय नइँ। मुदा अपना दिमाग मे भरल पुरना स्मृति, अनुभव आ किताब सब मे पढ़ल बातक प्रभाव-उष्मा सँ मुक्त भ’क’ जयबाक बदला ओकर दबाव किएक बुझा रहल अछि? जेना हार्ड डिस्क सँ कोनो चीज अहाँक बेर-बेर डिलिट वा फॉर्मेट कयलाक बादो हटि नइँ रहल हो, प्राय: तहिना हम एक तरहक दबाव हटा नइँ पाबि रहल छी!
रहरहाँ एना होइत छै जे अहाँ पहाड़ी छी तँ एहि खुशफहमी मे रहैत छी जे अहाँ पहाड़ विशेषज्ञ छी। बंगाली छी तँ बंगाल विशेषज्ञ आ मैथिल छी तँ मिथिला विशेषज्ञ! जेना विश्वविद्यालयक गलियारा मे भेट’वला वेतनभोगी साहित्यक प्राध्यापक अपना केँ आलोचक-साहित्यकार सँ कम नइँ बुझै अछि। हमरा सन प्रवासी-मानुस सेहो अपन गाम-ठाम दिस घुरैत काल प्राय: जिज्ञासु नइँ होइत अछि; कखनो ई भान नइँ होइत अछि जे हम अपना जन्मस्थान केँ, जत’ हमर नेनपन आ किशोरावस्था बीतल, समग्रता मे ठीक-ठीक नइँ जनै छी।...आ प्राय: तेँ ओत’ भेल नव-नव परिवर्तनक नियंता काल देवता बामी माछ जकाँ बेर-बेर हाथ सँ पिछडि़ धोखा द’ जाइत अछि!
हम मिरचैयाक कोरा मे खेलाइत जवान भेलहुँ जे हमर पहिल प्रेमिका थिकी; मुदा जखन एक बेर डूबैत-डूबैत बचलहुँ तँ बुझायल जे हम एहि अल्हड़ नदी केँ कतेक कम जनैत छी। हम बालपन मे जाहि मलाहिन, ग्वालिन, दलित-आदिवासी स्त्रीगण केँ (अभाव वला दिन मे) मिहनत-मजूरी करैत देखल, आइ अपेक्षाकृत आर्थिक निर्भरताक पहिल पायदान पर पयर रखैते संघर्षक ओकर हेरायल बाट हमरा समझ मे नइँ अबै अछि। 'सौंसे पोखरि हेलि अयलौं/ दाउर लग डूबि जायब से के जनैत रहय’ (अग्निपुष्प)। कहाँ जनैत रही जे सभक नजरि सँ बचाक’ जे डम्हा लताम अनै छलि, सैह अपन भाइक डरें हमरा बैर-चोर बता जेती!...




रात्रि 9 बजे, इलाहाबादक बाद


देह ट्रैन मे आ मन कतहु आओर उड़ल जाय रहल अछि।... जेना प्रसवा स्त्रीक नाक आ जीह तेज होइत छनि, प्राय: तहिना प्रवासी मानुस मे अपना माटि-पानि सँ जुड़ल अतीत केँ सँुघबाक क्षमता किछु बढि़ जाइत छै। पुरान काठक बाकस मे राखल पौती आ बिड़हाराक संग झिंगुरक खोंता मन पडि़ जायब आ तकरे संग फिनाइलक टिकियाक गंध सँ अनचोके मन-प्राण अजगजा जायब!...
साबिकक बड़का संदूक हठात फुजैत अछि। धुरा-गर्दाक बीच कैक टा ने विभिन्न आकार-प्रकारक घाँटी, गरदामी आ कड़ाम। हरिनक सिंग आ हाथी दाँतक टुकड़ी! बीझ लागल लगाम सेहो आधा दर्जन सँ कम नइँ। गाय आ महींस पर्याप्त छल आ घोड़ा ताबत धरि एको टा ने रहि गेल छल, मुदा लगाम अनामतिए! सुनने छलौं जे नेना सब केँ गलफड़क कोर मे लगामी घाव भेने लगाम लगा देने ठीक भ’ जाइत छै। हमरा कोनो घाव नइँ छल, मुदा दू-चारि बेर लगाम लगाक’ घोड़ा जकाँ दौड़बाक प्रयास मे गलफड़क कोर ततेक छिला गेल जे लगामी भ’ गेल। से कतेको दिन धरि खाइत काल जखन नोन-मेरचाइ कटकटा क’ लागय तँ अपन मूर्खता पर क्षोभ होअय। ताहि उम्र मे हम कोनो काबिल वला काज कयने हो, से मन नइँ पड़ै अछि, मुदा मुर्खतापूर्ण घटनाक अम्बार अछि जे आइयो महानगरीय जीवनक आपाधापी मे रहरहाँ मन पडि़ जाइत अछि। जेना अघोरी सँ लड़ब!... दाडि़मक चोरि!... हिरणी-बिरनीक प्रणय कथा सुनबाक लोभ!... बद्री बाबाक माजूम पर लोभायब!... कनिया-वरक स्वाँग मे निरंतर ठगाइत जयबाक सुख!...
की ई स्मृति-शृंखला घरमुँहाक नॉस्टेलजिक हेबाक संकेत थिक?




08 अगस्त, 2015, बेरू पहर, कालिकापुर


पोखरिक पच्छिम गाछी सब देखैत बँसबिट्टी धरि पहुँचि गेलहुँ। बँसबिट्टीक एक कात तीसेक साल पहिनेक लागल शीशोक जे पँतियानी छल ताहि मे सँ एक मात्र बचल शीशो आब जवान भ’ गेल अछि। एत’ कनेक पश्चिम एक टा विशाल जोमक गाछ छल। ओ गाछ कतेको साल पहिने कटि गेल, मुदा ओकर स्मृति मन मे ओहिना खरकट्टल अछि। एकाएक ओहि जोम-गाछक याद दशको पहिने बिछुड़ल प्रिया जकाँ आयल आ प्यास सँ कंठ सुखा जकाँ गेल।
...चौदहम कि पंद्रहम सालक गृष्म रहल हैत। कारी-कारी जुआयल जामुनक टटकापन ध्यान आकृष्ट कर’ लागल छल। ओहि मे किछु खास छलै जे बगलेक तुइतक लाली आ अत्ता कि बड़हरक लाली सँ भिन्न छलै। जुआयल जिलेबीक फड़ मे सेहो रहरहाँ लाली भेटि जाइ छै। अलबत! सिनुरिया आम कि रतबा लताम मे अद्भुत लाली रहैत छै। मुदा दाडि़म आ जामुनक रंग-संग किछु फराक बात छलै। कनेके जोर आकि दाब पडऩे फुटि पड़बाक भय सँ भरल। जेना ठोरक लाली!... आ ईहो ओही ग्रीष्म मे पता चलल छल जे सुन्नरि बालाक चारू रक्ताभ ठोरक पाछाँ अनेक रहस्य-कथा प्रचलित अछि!... आ सब सँ बढि़ ई जे रूप, रंग आ गंध सँ प्रीतिक शुरुआत भेल छल। गर्म खूनक लाली, भोरका रक्ताभ सूर्यक लाली, मिहनतकशक श्रमक लाली मे साम्य देखबा-बुझबाक शुरुआत अवचेतन मन मे कतहुँ ने कतहुँ ओही काल-खंड मे भेल रहल हैत।
कामना मे अड़हूल फुलेबाक उमेर छल ओ, 'लाल लाल तीन लाल’ वला फकड़ा बुझबाक उमेर!...
स्मृतिक क्रम टूटि गेल।
घुरि-फिर हम अपन नव-निर्मित घर मे अयलहुँ। किछुए घंटा पहिने एत’ पहुँचल छी आ कनेके काल बाद अररिया लेल निकलब। पयर मे घुरघुरा लागल अछि जेना!...




09 अगस्त, 2015, भोरुका पहर, डाक बंगला, अररिया


एहि डाक बंगला मे हम रातिए आयल रही। दस बजेक करीब। कोसीक छाडऩ आ'मैला आँचल’ परिसरक ई मुख्यालय छी। एहि शहर बाटे हमर आयब-जायब 1985 सँ रहल अछि। एत’ अनेक आत्मीय मित्र आ परिजन सब छथि जिनका सब सँ भेटघाट सेहो होइते रहल, मुदा राति बीतबैक अवसर पहिले बेर भेटल। ताहि लेल वियोगी जी केँ धन्यवाद।
एहि शहर मे पयर दै सँ पहिने बाटे मे जे सूचना भेटल से दुखी क’ देलक। शहर मे तनावक स्थिति अछि। बसात उनटा-पुनटा बहि रहल अछि। बूचडख़ाना आ माउसुक कारोबार सँ जुड़ल लोकक प्रति दोसर समुदायक मुट्ठीभरि मुँहपुरुषक मन मे कबाछु लागल छै।
राति हमरा निन्न ठीक सँ नइँ भेल। बगलक कोठली मे टिकल भारत यायावर आ रतन वर्मा खूब राति धरि हमरा संग छलाह। हम हुनका सब केँ शहरक नव हालात मादे किछु ने बतौलियनि। भोजनादिक बाद जखन ओ अपना कोठली मे सुत’ चलि गेलाह, हम बाहर निकलि असगरे टहलैत किछु दूर धरि घुमि अयलहुँ। शहर कतहुँ सँ जागल नइँ बुझायल। वापस डाक बंगलाक परिसर मे ठाढ़ रही तँ ओत’क एक मात्र कटहर गाछ जागल आ आत्मीय सन लागल। गाछक नीचा हवा मे खडख़ड़ाइत सूखल पातक परिचित स्वर। दिन भरिक गर्मीक प्रभाव कम भ’ गेल छल। हम सुत’ लेल गेलहुँ, मुदा निन्नक भार नइँ छल। कैक बेर आँखि लागल, मुदा सपना देखबा सन नीक निन्नक आमद नहिए भ’ सकल।...
भोर मे पानि, चाह आ अखबार तीनू भेटल। स्नानादिक बाद तैयार भ’ शहर मे निकललहुँ आ घुरि अयलहुँ। एहि शहर मे हमरा ओ शहर नइँ भेटल जकरा संग कहियो लाड़ लागल रहय। ई शहर नइँ तँ तेहन आधुनिक भेल अछि आ ने पहिने वला तेहन बात-विचार रहल जाहि संग 'फेनुगिलासी हँसी’क तार जुड़ल छल।




10 अगस्त, 2015, होटल, एन.एच.57, अररिया


काल्हि राति विदापत देखल, आइ पमरियाक गायन-नृत्य। रेणुक धरती पर रेणुक नाम पर आठ-दस लाख खर्च क’ कोनो साहित्यिक आयोजन (रेणु-महोत्सव) होअय आ ओहि मे आठ-दस सँ बेसी स्थानीय लोक नइँ जुटय तँ एकरा की कहबै?
विदापत केँ पुनर्जीवन देबाक प्रयास नीक लागल। विदापतक एक टा अलग रूपक प्रस्तुति नेपाल संगीत तथा नाट्य प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमांडूक दिस सँ रमेश रंजनक प्रयासें विराट नगर मे भेल छल जाहि मे अतिथि रूप मे हमरो दर्शक बनबाक अवसर भेटल छल। विराट नगर वला प्रस्तुति अलग तरहक छलै। ओहि मे हास्य बेसी छलै आ किछु हद धरि फुहड़ता सेहो। एहि तुलना मे रेणु गाँव औराही हिंगनाक टीमक प्रस्तुति मे हास्य रहितहुँ करुणाक स्थान प्रमुख छलै आ एक तरहेँ मिथिलाक निम्नवर्गीय जीवनक कलात्मक सजगता देखा पड़ैत छलै। लोक जीवनक मानवीय ऊष्मा आ ऊर्जा सँ पूर्ण एहि प्रस्तुति मे स्थानीय वाद्यक प्रयोग सेहो खास छलै, माने विशिष्ट। एकर मिरदंगिया रेणु जीक समयक मिरदंगियाक पुत्र छल जे जांडिस सँ पीडि़त रहलाक बादो नीक प्रस्तुति कयने छल।
एहिना झंझारपुर सँ आयल पमरिया बंधुक प्रस्तुति प्रभावित कयलक। कुणाल जीक सानिध्य मे आयल पमरिया टीमक प्रस्तुति एतुका दर्शकक नव तूर लेल अबुझ कि अरुचिकर जेना रहल हैत साइत। ओ सब आधुनिक सस्तौआ संगीतक कार्यक्रम जल्दी शुरू करेबाक उद्देश्य सँ पमरिया-कलाकार केँ 'हूट’ क’ कार्यक्रम बीचे मे रोकबा देलक। पमरिया सब आहत छल। ओकरा हृदय पर ओहने आघात पहुँचल छलै जेना रेणुक कथा 'ठेस’क नायक सिरचनक हृदय पर पड़ल छलै। हमरा ओहि लोक कलाकारक पीड़ा व्यथित क’ देलक।
साहित्य-चर्चा?... बुढिय़ा फुसि!... भेटघाट भेल रामधारी सिंह दिवाकर, वसंत कुमार राय, सदानंद सुमन, विकास कुमार झा, भारत यायावर, रतन वर्मा, कुणाल, रहबान अली राकेश, गिरीन्द्रनाथ झा, परवेज आदि सँ। बस सैह!...
आब जल्दी सँ जल्दी एत’ सँ निकलि जाइक मन भ’ रहल अछि।






11 अगस्त, 2015, साँझ, कालिकापुर


आइ सबेरे अररिया सँ निकललहुँ रेणु गाँव औराही हिंगना। बीस-बाइस साल बाद गेल रही। संग मे रहथि रामधारी सिंह दिवाकर, कुणाल, विकास कुमार झा, सदानंद सुमन। सदानंद सुमन जी केँ छोडि़ हम सब कमे काल रुकलहुँ। पद्म पराग राय वेणु विधायक छथि आ से रेणुजीक घर-दुआरिक बदलल रंगति सेहो बता रहल छल। लाइट कटला पर जेनरेटरक व्यवस्था छलै आ से तुरत चालुओ भ’ गेल रहै। रेणु जीक फोटो सँ पैघ-पैघ फोटो वेणु जीक पार्टीक नेता लोकनिक छल आ वेणुक गपक बीच-बीच मे आगामी चुनावक प्रसंग हुनक चेहरा परहक चिंता-रेखाक संग अभरि अबैत छल। हम पहिनेवला किछु बात-विचार तकैत भीतर सँ परेशानीक अनुभव क’ रहल छलहुँ। हम ओहि क्षण सँ दूर रेणुक हृदयक धड़कनक अनुगूंज सुनबाक लेल एकांत ताक’ लागल रही। वापसी मे निर्माणाधीन रेणु-म्युजियमक नवे बनल बिल्डिंग देखि प्रसन्नता भेल। एखन ई बिल्डिंग मात्र अछि। से भव्य अछि। आगाँ योजना-अनुकूल सब किछु बढिय़ा होयत, रेणुक गरिमा आ प्रतिष्ठानुकूल—से उमेद अछि।




करीब एगारह बजे हम सब फारबिसगंज पहुँचलहुँ। दिवाकर जीक पुरान मित्र (लंगोटिया साथी) तारकेश्वर मिश्र 'मयंक’ दम्पती सँ आत्मीय आ मोन रहबा सन भेटघाट भेल। मयंक जी आ हुनक पत्नीक सत्तरि-पार जोड़ी अनुपम छल। अपना समय मे चर्चित रहल हैत ई जोड़ी—से दिवाकर जीक कथन मात्र सँ नइँ सहजे भासित होइ छल। दिवाकर जी बेर-बेर जोर द’ कहै छलाह, ''आब यैह टा एक मात्र सही अर्थ मे हमर संगी आ मित्र रहि गेल अछि। स्कूल सँ कॉलेज-यूनिवर्सिटी धरि हम सब संग रहलहुँ, एक कोठली मे संगे-संगे।’’ धिया-पुताक बाहर रहने फारबिसगंज बस दुनू बेकति रहि गेल छथि। तरह-तरहक मिठाइ-नमकीन संग चाह समाप्त क’ फोटो-सेसनक दौड़ सेहो चलल!
मयंक जी ओत’ सँ निकलला पर विकास जीक विचार भेल जे हम सब 'जगदीश मिल कम्पाउंड’ देख’ जायब। फारबिसगंज बचपन सँ अबैत रहल छी— हाट-बजारक काजे, सिनेमा-थिएटर आ मेला देख’, दबाइ-वैदक प्रयोजने आकि ट्रैन आदिक यात्रा-प्रसंग। जगदीश मिल कम्पाउंडक कात सँ अनेक बेर गुजरल हैब, मुदा ओकर भीतरक संसार देखबाक जरूरति कि इच्छा पहिने कहियो नइँ भेल छल। आभारी छी अग्रज विकास कुमार झाक जे हुनका कारणें ई कम्पाउंड देखि पाओल। आब ओत’ राइस मिल नइँ छै। राइस मिल कहिया ने बिका गेल, बन्न भ’ गेल। मुदा एहि कैम्पस आ भवन सब केँ एक भव्य म्युजियम रूप मे सुरक्षित संवर्द्धित क’ दर्शनीय बना देल गेल अछि। पुरान स्मरणीय चित्र, कलाकृति आ मारते रास चीजक संगहि एक टा भव्य पार्क सेहो अछि। पार्क मे अनेक तरहक वनस्पतिक उपस्थिति कोसी परिक्षेत्रक हिसाबें एकसर आ अद्भुत अछि। कुणाल जी आ विकास जीक अनुसार एहि परिसर मे अनेक तरहक औषधीय महत्त्वक जड़ी-बूटी धरिक गाछ आ लता सब अछि। मारते चिड़ै-चुनमुनीक कलरव सुरम्य परिसरक हरीतिमा केँ मोहक बनबै छल। ओत’ सँ निकलबाक मन नइँ करै छल, मुदा दिवाकर जी गाड़ी मे बैसल-बैसल खिसिया रहल हेताह से सोचि हमसब पार्क सँ बाहर भेलहुँ। दिवाकर जीक बचपन ओत’ बीतल छल आ ओ अनेक बेर आयल छलाह तेँ हुनक आकर्षण तेहन नइँ छलनि। संगे हुनका गाम जयबाक जल्दी छलनि। निकलैत-निकलैत बातक क्रम मे विकास जी बतौलिन जे बाबा (यात्री) फारबिसगंज अबै छलाह तँ प्राय: बेसी एही कम्पाउंड मे ठहरैत छलाह। एहि सभक अलावा कम्पाउंड भीतर जगदीश बाबूक परिवारक नव पीढ़ीक रुचिरा गुप्ताक 'अपने आप’ नारी केंद्रित संस्था अछि जकर रजिस्टर्ड कार्यालय न्यूयॉर्क आ कोलकाता, दिल्ली एवं हेड आफिस'जगदीश मिल कम्पाउंड फारबिसगंज’ अछि। चर्चित पत्रकार आ समाज सेवी रुचिराक काजक क्षेत्र बहुत व्यापक स्तर पर पसरल छनि।
फारबिसगंज सँ बाहर भेलाक बाद पंद्रह-बीस मिनट बीतल हैत कि नरपतगंज आबि गेल। एन.एच.क कारणें दिवाकर जी केँ अपन घर दिस जायवला गली चिन्है मे दिक्कति भ’ रहल छलनि। हमर गाम एत’ सँ सात-आठ किलोमीटरक भीतर आ नरपतगंज हमर बेसी अबरजात तेँ पुछलियनि जे पिठौरा वला रोडक पश्चिम वला गली मे घर अछि की?... ओ हँ-हँ कहलनि आ तत्क्षणे गली हुनक पहिचान मे आबि गेलनि। क्षणे मे हम सब दिवाकर जीक दलान पर रही। दिवाकर जीक छोट भाइ आ भतीजा सब बड़ प्रसन्न मने स्वागत मे तत्पर। दिवाकर जी अपन घरक ओ कोठली देखौलनि जाहि मे ओ युवावस्था मे रहैत छलाह आ जत’ ब्याहक बाद सेहो सपत्नीक अपन ऊर्जावान समय मे रहल छलाह।
दिवाकर जी ओत’ करीब दू घंटा रहल हैब हम सब। एहि बीच ओ अपन गृह-जंजालक पुरना खेड़हा सब सुनबैत रहलाह। ओ अपन पित्तीक मादे बेसी विस्तार सँ बतौलनि।... जे कोना हुनक पित्ती हुनका सभक हिस्साक मारते रास जमीन-जायदाद हड़पि आ बेचि लेलकनि। हुनक कंजूसीक अनंत कथा। ओ कोना नित्य पाइ गनै छथि आ एक-एक पाइ कोना दाँत ध’क’ रखै छथि!... एत’ धरि जे हुनक बेटा-पोता हुनक एहि व्यवहार सँ आजिज आबि दूर भ’ गेलनि। जे-से, कुणाल जी आ विकास जी संग हमरा अपना परिक्षेत्रक एक कथाकारक नेपथ्य केँ देखबा-बुझबाक सुख भेटल। चल’ सँ पहिने जे भोजन भेल सेहो अपना मैथिल प्रकारक होइतहुँ अपन अलग विशिष्टता लेने। कंचू (अरिकंचन)क तरुआ ओहि तरहक पहिल बेर खयने रही। हरियर मेरचाइ, कागजी नेबो,अनेक तरहक तरुआ, पापड़, अचार आदिक बाद दही आ रसगुल्ला सेहो उत्तम। आग्रह आ सत्कार बहुत बढिय़ा, आबेश आ आत्मीयता सँ पूर्ण, मुदा 'मिथिलांग’ वला दुराग्रह नइँ! ई बात कुणाल जी केँ बेस रुचलनि।
दिवाकर जीक संगे कुणाल जी आ विकास जी पटना निकलबाक हड़बड़ी मे रहथि। ओ हमरा गामक कात सँ, डोडरा-क्वार्टर चौक पर हमरा छोड़ैत आगाँ निकलि गेलाह। विकास जीक जोर देलाक बादो दिवाकर जी केँ पटना पहुँचैक हड़बड़ी बेसी छलनि। ओ एक्के ठाम अडि़ गेलाह। एतेक लग सँ हुनका लोकनिक एना निकलि जायब कने धक्का जकाँ जरूरे लागल, मुदा आब से सहब आदति मे आबि गेल अछि।
बड़ी काल धरि एसगर अपन नव निर्मित मकान मे बैसल रहलहुँ। फेर ई सब लिखलहुँ।... अगिला भोर निकलबाक लेल बैग सैंतबाक अछि। कोसी कातक प्रवास लेल।




12 अगस्त, 2015, भोर, कालिकापुर, यात्रा सँ पहिने


भोरे भोर एहन तिक्ख रौद। निकलब कठिन, मुदा निकल’ पड़त। समय कम बचल अछि आ जे समय अछि तकरा बेसी सँ बेसी कोसी केँ समर्पित करबाक अछि। कोसी कात! मलाह-मलाहिनक संग-साथ। धार... पानि... नाह... माछ... बोर्डर... एसएसबी!... ओत’क जीवनक रंग-रहस मे रमबाक अछि। ओत’क दिन-रातिक आकास, भोर-साँझक बसात आ रौद-बर्षाक बदलैत महक अपन मन-प्राण मे भरबाक अछि। राति, चान, तरेगन, भगजोगनी आ कोसीक संग!...
एहि जीवन मे जत’-जत’ सँ बेसी राग-भाव जुड़ल अधिकांश जेना-तेना ओहि तन्नुक ताग केँ तोडि़ दूरी बना लेलक। बस यैह कोसी आ मिरचैया टा जकर अंत-अंत धरि आस अछि। पलखति भेटने जखन कखनहुँ हम ओकरा लग जायब, ओ हमर हाथ गहत।
हमर सारथि केँ कने बिलंब अछि। हम तैयार छी। हमर मन दौडि़ जाय चाहैत अछि।... कि हमरा मन मे रातुक सपनाक रील चल’ लगै अछि। ओ सपना अतीतक गर्त मे टुटल तन्नुक तागक!...


हम ओहि कोठली मे कोना आनल गेल रही से नइँ पता
अहींक परिजन-पुरजन रहल हेताह लाल कका-सुन्नर बाबा टाइपक
स्वागत-सत्कार भेल छल ओहि राति खूबे, से धरि मन अछि
आइ-माइ-दाइ सब देहरि लग खूबे जुटल छलि
गलगुल आ हँसीक फुलझड़ी कोका बराहक पानि जकाँ
चक्रव्यूह छल परीक्षार्थ
हम कैशोर्यक देहरि पर अपन असहजता केँ उघार नइँ होब’ देबाक अनंत जतन मे लागल


हम ओ बालक उद्दंड कि अवढंगाह
हमर चूबैत घरक कोड़ो-बत्ती सडि़ गेल छल
हमरा घरक मठौत मे साँप केचुआ छोडऩे रहय
कोठीक नीचाँ मूसक माटि
आँगन मे सह-सह करैत चाली
दलान पर मोथाक जंगल
झौआ-पटेरक चाँछ कि खैबन्नीक काँट बीच गाय-महींस रोमैत
भ’ गेल रही तहिया पढ़ल-लिखल बेरोजगार अनाथ
एहना मे सहज रहब कते कठिन भेल हैत हमरा
अहाँक दप-दप आँगन मे जत’ चारू बिट्टा छल चक-चक!


राति कौतुहल मे निन्न बढिय़ा नहिए भेल
पड़ल रही निन्ने जकाँ भोरहरबा मे कि
बसात संग बड़ सोहाओन बुन्न-झिस्सी कोठली मे आयल
इन्द्रधनुषक सातो रंग जेना एक हाथक दूरी पर
अहाँ नहुँ-नहुँ घर बाहरैत कम आ निहारैत बेसी अपन भविष्य दिस
अनठौने पड़ल हम बाँहिक अ’ढ़ सँ परखैत अहाँक भाव-दशा
ठामे ठाम बेर-बेर फुसिएक बाहरैत अहाँ घर नइँ वसुधा
एक काजक लाथें दोसर काज मे हेरायलि हिरणी
बस एतबे कालक सोझाँ-सोझी


रन्नू सब दिन सब ऋचीक सँ ठगाइते रहल
दस हजार सँ बेसी राति बीति गेल
बहि गेल कतेको लाख करोड़ क्युसेक पानि कोसी मे
हम ओहिनाक ओहिना ठाढ़ हँसी-खुशी हेराक’
कजरी, भेसना, सीता, सुरसरि, मिरचैया
नदी मात्र नइँ रहलीह हमरा लेल
मुदा सब मे अहीं केँ तकैत छी हम
तकिते रहब गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, झेलम धरि
तकिते रहब मिसिसिपी, ह्वांगहो सँ नील धरि




12 अगस्त, 2015, राति, रतनपुरा


कटैया पावर हाउस सँ आधा किलोमीटर पश्चिम पूर्वी केनाल छोडि़ कोसीक पूर्वी तटबंध पर शैलेशपुर आउ तँ देखब जे कात मे एक टा खूब झमटगर बस्ती बसल अछि। एत’ हम करीब तीस वर्ष पहिने आयल रही तँ एहन फैलाव नइँ देखने रही। आइ ई अभिनव-अद्भुत आ एक अलग तरहक दुनिया थिक। एत’ अनेक देशक सिक्का चलैत छै। एत’ एक टा अलिखित संविधान बेसी ईमानदारी सँ सफल छै। भाषा सेहो कैक तरहक चलै छै, किछु भाषा रोज-रोज गढ़ल सेहो जाइ छै। हमरा एक्के झलक मे बुझायल जे एत’ दर्जनो उपन्यास आ फिल्मक प्लॉट सही आदमीक बाट ताकि रहल छै।
कहियो जत’ बाँस भरि गहींर खाधि छल तकरा भथिक’ लोक सभ ओत’ खूब डीलडौल वला घर-आँगन बनौने अछि। एहि बस्ती मे एसएसबी वला सभ जखन-तखन दबीश दैत अछि। एसएसबी वलाक एहन समस्त दबीश आ चौकसीक बादो एत’ अंतरराष्ट्रीय कारोबार इत्मीनान सँ चलैत अछि मौखिक संविधानक अनुसार नित्य, दिन-राति, सतत!
चारि-पाँच बजे हम अपन एक राजमिस्त्री-दोस्तक ठेकान पर समदा-भगवानपुर पहुँचल रही। ओत’ सँ हुनका संग क’ जाबत कटैया पश्चिमक ओहि बस्ती मे पहुँचलहुँ अन्हार खूब गाढ़ भ’ गेल छल। हुनक दोस्तक घर तटबंध सँ लागले छल। एक तरहेँ कोसीक आँगन! हुनक दोस्त ताधरि भीमनगर सँ घुरल नइँ छल, दोस्तिनी सत्कार मे तत्पर। कुर्सी आ चाह भेटल। रातुक भोजनक तैयारी सेहो होइत लागल। हम रोकबाबैक प्रयास कयलहुँ, मुदा से बेकार।
कनेके काल मे हमर दोस्तक दोस्त अयलाह। करनी-तेसी वला झोड़ा राखि पयर-हाथ धोक’ संग बैसलाह। एक तोजी चाह फेर भेलै आ हमरा सब एक चक्कर बस्तीक लगबै लेल निकललहुँ। हमर रहै के व्यवस्था पक्की भ’ गेलै। बस्ती मे सेहो रहि सकैत रही आ भीमनगर चौक लग सेहो। बराजक एहि पार आ ओहि पार दुनू ठाम मुल्की होटल जान-पहिचान वलाक निकलि आयल। माने राति-बिराति कखनो कोम्हरो सँ जाइत-अबैत जत’ चाही रुकि सकै छी। कटैया, बराज, भीमनगर आ बीरपुर मे सँ कतहुँ। हमरा संग आयल डुमरी चौकक टेम्पूवला सेहो बड़ काजक छल। ओ एहि इलाकाक इंच-इंच सँ परिचित। बात-विचार मे सेहो नीक बुझायल। सारथि रूप मे संग निभाबै लेल ओ सहर्ष तैयार छल। आब हमर मन हल्लुक बुझायल। हम बस्ती आ ओकर वातावरण मे अपना केँ मिला लेल।
एहन कोसिकन्हा अन्हार बहुत वर्ष पर भेटल रहय। पटुआ आ कास-पटेरक जंगलात संग कोसीक सामीप्य मे रातिक रंग अलगे तरहक छल। भगजोगनीक इजोतक सामथ्र्य सर्वाधिक एहने राति मे लखाइत अछि।
रातिक नौ बजे बस्ती सँ घुरि क’ अयलहुँ तँ हमर दोस्तक दोस्तिनी खाना तैयार क’ लेने छली। भरुआ पुड़ी संग तीन-चारि टा तरकारी परोसल गेल। गृहस्वामिनी स्वयं बगल मे ठाढि़ भ’ पंखा हौक’ लागलि। एक पुड़ी खयने हैब कि हमरा लागल ई जनाना कोसीक साक्षात प्रतिरूप थिकी। कोसीए सन नेह सँ भरलि! ओहने ठाँहि पठाहि बाज’ वाली, बालु पर खसैत इजोडिय़ा सन हँसी लेने। गपशपक बीच हम पुछलियै—अन्हरिया राति मे हमरा एहि पार सँ ओहि पार कराक’ लाबि देबै?
ओ ठठाक’ हँसलि—ई कोन पूछै वला बात भेलै!
क्षणभरि बिलमिक’ दोसर प्रश्न कायलहुँ—नाह चलायब सीख’ मे कते समय लागत हमरा?
—डर जते जल्दी खत्म हैत!...
—से डर भगायब तँ अहाँक काज भेल ने!
—से भगा देब डर, लेकिन आगू-पाछूक मोह-माया वला लटारम नइँ रहय मन मे त... संगे ई बिसरि जाउ जे हम के थिकौ आ किऐ सीखब! बस पानिक धार और ओकर बेवहार पर नजरि रहय।
—माने जिन डूबा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ!
अचानक हमर दोस्त बाजल—जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार!


समदा-भगवानपुर होइत एगारह बजेक करीब रतनपुरा लौटलहुँ। रस्ता मे कास आ पटुआ खेतक बीच एकसर ऑटोक इजोत अलग दृश्य रचैत छल। सड़क पर बेंगक उजाहि। भोर पाँचे बजे निकलबाक अछि। देह भसिया लागल अछि। लगै अछि जेना चौकी पर नइँ नाह पर होइ!...




13 अगस्त, 2015, होटल सप्तकोसी, बीरपुर


भीमनगर-बीरपुर, भंटाबाडी-बराज, पूर्वी कोसी तटबंध-पूर्वी केनाल आ कटैया पावर हाउस आदिक इलाका हम किशोरावस्था सँ इंच-इंच धाँगने छी। मुदा आइ ओहि समस्त स्मृति केँ सिलेट जकाँ मेटा देब’क इच्छा भेल। पछिला पच्चीस-तीस वर्ष मे भेल नव परिवर्तन केँ बुझबा-पकड़बा लेल पहिनेक छाया सँ मुक्त हैब जरूरी अछि। हम आइ भोरे-भोर भीमनगर पहुँचलहुँ आ एकर अनेक गली-कोनटा केँ नव तरहेँ देखलहुँ। जेना बाघा बोर्डर, कारगिल बोर्डर आकि बंग्लादेशक बोर्डर केँ पहिल बेर देखैत हो, प्राय: तहिना। दू-तीन घंटा भीमनगर भटकिक’ करीब नौ बजे बीरपुर अयलहुँ आ होटल सप्तकोसीक कमरा मे सामान राखि ओही ऑटो सँ भीमनगर वापस भेलहुँ। निकलैत काल हम एक खास तरहक झोड़ा कीनलहुँ जकर उपयोग अमूमन स्त्रीगण करैत अछि। एहि झोड़ा केँ केओ स्त्रीगणक पर्स मानय, हमरा लेल बाटक पर्याप्त सामान रखबा आ कन्हा पर लटकेबाक सुविधा छल। भेषभूषा कने उटपटाँग रखै मे दिक्कति नइँ रहय। अपन आफियत बेसी पसिन। से एहू लेल जे परिचित कोनो व्यक्ति सँ भेट हेबाक संभावना नइँ रहय। बीरपुर बस अड्डा बीतल। खड़होरि, खत्ता, खेत आ मारते रास गाछ-बिरिछ। हरीतिमाक अंतहीन विस्तृत संसार। कास,डाभि, हाड़ा, सेमार, करमी, करबीरक जंगलातक संगे खैर, बेर, साहुड़, बबूर, शीशो आ बाँस। आम-कटहरक गाछ कम, बहुत कम। झिंगुनी-पड़ोरक लत्ती कतहुँ-कतहुँ।... एकदम उफाँटि रस्ता!...
बहुत कम समय, दसो मिनट ने लागल कि भीमनगर फेर आबि गेलहुँ। ऑटोवला केँ भंटाबाड़ी वला मोड़ लग छोडि़ पयरे आगाँ बढ़लहुँ। एसएसबी कैम्प लगक चैकिंगक बाद एक टा हवलदार सँ पुछलियै—कुसहा जाइ-अबै मे कते काल लागत? कोनो राजस्थानी मीणा छल ओ। ओ अपना केँ व्यस्त दर्शाबैत दोसर सिपाही सँ पूछै लेल कहलक। दोसर बतौलक जे लगै तँ कमे काल छै। अपन वाहन रहने डेढ़-दू घंटा मे घुरियो आबि सकै छी। मुदा मधेसी आंदोलन के कारणें बस-गाड़ीक हड़ताल छै नेपाल मे तेँ जायब कठिन। हम कहलियै जे स्मगलर सब केँ वाहन भेटि जाइ छै हमरा नइँ भेटत!... ओ बाजल—स्मगलर सब वाहन बलें नइँ चलै छै, वाहन ओकरा बलें चले छै। ओ हवा-पानि कथूक सवारी गाँठि लैत अछि। कि नहुए हम पुछलहुँ—औ जी, अहाँ तँ जानकार छी। कने हमरो बताउ ने! स्मगलर सभक मादे जानकारिए लेल तँ हम कोसीक कछेर धाँगि रहल छी! ओहि सिपाही केँ जेना साँप सुँघि लेलकै। ओ घबड़ा गेल। मुदा तुरंते रंग बदललक आ मीणा जी केँ हरियाणवी टोन मे हमरा मादे किछु कहलक। मीणा जी हमरा सँ आईडी माँगलनि। आईडी दैत हम पुछलनि—'ठम जा मीणा जी, स्मगलरों से भी आईडी माँगते हो क्या?’ ओ सशंक्ति, 'क्या पुछते हो सर जी! क्या पुछते हो सर जी!’ कहैत हमर गाजियाबादक पता मे ओझरायल छल!... 'जेसलमेर से बाड़मेर तक ऐसे ही घुमा हूँ मीणा जी! ढाणियों में रात गुजारी। बाजरे की रोटी कुएँ का पाणी यूँ ही णहीं मिलणा था। और तुम पता देखते हो जी!’ आइडी वापस करैत ओ हटि गेल। हम नेपालक चेक पोस्ट पार करैत भंटाबाड़ी बस स्टैंड पहुँचलहुँ।
भंटाबाड़ी स्टैंड मे बसक पता नइँ छल। एक टा स्टैंड किरानी सँ पुछताछ करैत रही कि किछु युवक मोटर साइकिल सँ पहुँचबैक प्रस्ताव रखलक। लेकिन ओकर रंग-ढंग हमरा काजक नइँ बुझायल। आधुनिक लफँगा लागि रहल छल। हम गप टारि देल आ रोडक दोसर कातक दोकान दिस बुलैत बढि़ गेलहुँ। कि तखने बराज दिस सँ आबि एक टा खाली बस ठाढ़ भेल। कंडेक्टर कहलक जे आधा घंटा मे खुजत। हम एक टा सीट दफानि बैस रहलहुँ, आरो कैक टा पसिंजर आबिक’ बैसैत गेल। हमरा कुसहा लेल कत’ उतरब ठीक रहत से पता नइँ रहय। सहयात्री सब सँ जिज्ञासा कयल। भीमनगर चौकक एक टा बूढ़ा जे स्त्रीगणक पहिरना आ फेशनक निंदा पानि पीबि-पीबिक’ क’ रहल छल, हमरा बगले मे छल। हम बूढ़ा केँ पुछलहुँ—घर मे के सब अछि? ओ सात टा बेटा आ सातो पुतहुक वृतांत बतब’ लागल। पुतहुक व्यवहार सँ स्पष्टत: दुखी! विधुर-जीवन आ देह-दशा सँ तेहन बूढ़ नइँ। हमरा बुझा गेल जे जरूर ई पुतहुक दुनिया मे हुल्की मारैत हैत। हम झोड़ा सँ सेब निकालैत एक टा बूढ़ा दिस बढ़ौलहुँ। नइँ-नइँ करैत ओ ल’ लेलक। फेर अपना ओत’ अबैक नोंतो देलक। फेर स्मगलरीक काज सँ जुड़लि स्त्रीगणक प्रसंग एक टा अश्लील कथा नहुए सुनौलक। वैह बूढ़ा बस खुजैत काल हमरा बतौलक जे हम श्रीपुर चौक धरिक टिकट ल’ ली आ ओत’ उतरि कोनो छोट गाड़ीक पड़ताल करी। किछु ने किछु भ’ए जायत!
एगारह बजेक करीब हम श्रीपुर चौक उतरलहुँ। श्रीपुर चौक कुसहा सँ चारि-पाँच किलोमीटर पहिने। छोट-सन चौक। पाँच-सात टा दोकान। नेशनल हाइवेक काते मे विशाल पीपर गाछक नीचा राजू यादवक गाड़ी-मरम्मति-पंक्चर सँ जुड़ल काजक छोट सन दोकान छल। राजू एक टा बाइकक अगिला चक्का खोलि पंक्चर चेक कर’ मे व्यस्त छल। हम अपन जिज्ञासा ओही युवक सँ करब उचित बुझलौं। ओ बाजल—सर ई चक्का फाइनल करै धरि रुकय पड़त। हम लेने जायब आ पूरा कुसहा-मृगवन घुमा आनब। टिकट भनसार खर्च के बाद घुरला पर जे अहाँ केँ उचित लागय द’ देब।
मोसकिल सँ चालीस मिनट नइँ लागल हैत। मरम्मति पूरा क’ दोकान बढ़ाक’ राजू घर गेल आ कपड़ा बदलि एक टा नबका बाइक पर हीरो जकाँ आयल। हम बगलक मंदिरक बरामदा पर सूतल बाबाजी सभक लापरवाही देखि ईष्यालु भ’ रहल रही। हाथक बोतल सँ पानि पीबि झोड़ा मे राखि विदा भेलहुँ। पाँचे मिनट बाद मृगवन वन्यजीव संरक्षण परिक्षेत्रक चेक पोस्ट नाका लग पहुँचलहुँ। भनसार-गाड़ी-पर्ची आ एन्ट्री टिकट लैत खन राजू अपन पता लाही-श्रीपुर बतबैत हमरो पता नेपालेक कोनो गाम लिखौलक। ओकर होशियारी तखन हमरा बुझै मे आओल जखन पता चलल जे इंडियाक पता रहने दोबर पाइ लगैत। चेक पोस्ट पर टिकट देख’वला सिपाही सेहो ओकर परिचित छलै। कोसी बान्ह पर आगाँ बढ़ैत ओ एक अनुभवी गाइड जकाँ हमरा सब जगहक विस्तृत जानकारी दैत आगू बढ़ैत जा रहल छल। एक-एक गाछ, झाड़ी-जंगलक संगहि कोसीक कछेर मे चरैत अरना महींसक मादे। हाथीक झुंड वला जगह तेजी सँ पार करैत ओ ओहि ठाम रुकल जत’ 2008 मे कोसी टूटल छलै। लगभग आधा किलोमीटर ओहि टुटलाहा जगह बान्ह तँ बन्हा गेलै, मुदा गाछ नवके टा थोड़ेक छलै। बान्ह पर ओत’ पश्चिम दिस नइँ देखि पूब दिस नजरि बेसी जाइत छल जत’क गाम दहा-भसिया गेल छलै। 2008 मे कयल कोसिक उत्पातक निशानी साक्षात देखा रहल छलै। अरना महींस, बनैया सुग्गर आ हाथीक झुंड बान्ह सँ नीचाँक जंगल मे जत’-तत’ एडवेंचर्स क्रिएट क’ रहल छलै। ठाम-ठाम रुकि हम फोटोग्राफी सेहो करैत जा रहल रही। एक ठाम जंगल दिस उतर’ चाहलहुँ तँ राजू रोकलक—सर, खतरनाक एरिया छै। बड़ पैघ-पैघ नाग छै एहि मे! आ नागराजक गति आ गतिविधिक खेड़हा ओ बहुत वैज्ञानिक ढंगें सुनौलक।
हम सब कुसहा पार क’ बान्ह पकडऩे मृगवन मे आगाँ बढ़ैत गेलहुँ, बढ़ैत गेलहुँ। चतरा सँ किछुए पहिने राजू पूछलक—की विचार छै सर! चतरा तक जयबै तँ वापस एहि रस्ते नइँ आब’ देत। तखन हाइवे सँ जाय पड़त। आगाँ चेक पोस्ट छै! हम कहलियै—हौ राजू, घुरि चलह। कुसहा मे नेपाल सेनाक म्युजियम सेहो देखबाक अछि। ओ कहलक—से एक टा आरो देखनुक जगह छै। कहलियै—तखन वापस भ’ जा। वापसी मे दू ठाम नाग देवता रास्ता कटलक। दुनू ठाम ओ कने रुकल। एक ठाम हाथी कनेके नीचाँ छल तँ गाड़ी तेज गति सँ बढ़ा लेलक। आ करीब तीन घंटाक चक्कर पूरा क’ हम सब कुसहा मे बान्ह पर सँ उतरलहुँ—कोसी टाप्पू बर्ड वाचिंग कैंप (http://www.koshitappu.com/)। एत’क केयर टेकर राजूक परिचितक समधी छल तेँ राजुओ ओकरा 'समधि’ संबोधित करैत छल। हम सब ओहि कैंपक अवलोकन करिते छलहुँ कि ओहि कैंपक डिजाइनर, डायरेक्टर कुर्बान मंसूरी सेहो आबि गेलाह।
कोसी टाप्पू बर्ड वाचिंग कैंप पूरा घुमि-फिरि देखलाक बाद हम एहि निष्कर्ष पर पहुँचलहुँ जे मिथिलाक परिवेशक संग एहि ठामक खास शैलीक फुसिघरक एहन सुंदर व्यावसायिक उपयोग कर’वला कुर्बान मंसूरी साइत पहिल व्यक्ति छलाह। बाँस-बत्ती, कास-खड़, पटुआक सूतरी-डोरी, सखुआक खुट्टा आ चिक्कनि माटिक अलावा ओहि घर सभक निर्माण मे कतहुँ ईंट, सीमेंट, छड़ आदिक उपयोग नइँ कयल गेल छल। एत’ धरि जे कालीन-कारपेटक जगह पटेर आ मोथाक सुंदर गोनरि आ चिकक उपयोग कयल गेल छल। देबाल, मोखा आ ओकर पाढि़ आदि विभिन्न तरहक माटि सँ ततेक बढिय़ा जकाँ ढौरल-लेबल छल जे ओकरा आगू रॉयल पैंट वला काज कने झूस बुझाइ छल। घर सँ चारि डेग हटिक’ वाशरूम आदि मात्र छल जे पक्का छल। हँ, कीचन रूम आ पैघ सन कॉमन डाइनिंग हॉल सेहो पक्का। बाकी कोठली सब दू-तीन कोटिक छल। किछु डबल-सिंगल बेड कोठली एक घर मे तीन-तीनक हिसाब सँ छल। किछु एहन कोठली आ बेड छल जकरा लेल एक टा स्वतंत्र छोट सन चौखड़ा बनल छल। किछु एहनो छोट-छोट चौखड़ा छल जे विस्तृत जलाशयक बीच मे टाप्पू कि मचान जकाँ बुझा रहल छल। ओत’ पहुँचै लेल स्वीमिंगपुलनुमा रस्ता छल जे बाँस-बत्तीक चचरी सँ बड़ कलात्मक ढंग सँ बनाओल गेल छल। समस्त रस्ता डाभि-कासक जंगल बीच आकि विस्तृत जलाशयक उपर सँ छल। अद्भुत दुधिया सूत सँ बनल कोरियन मच्छड़दानी। पौराणिक ग्रंथ मात्र मे पढ़ल जंगल-मध्य ऋषि मुनिक आश्रमक बिम्ब मन पडि़ रहल छल। अद्भुत रम्य कानन। शांत-स्निग्ध वातावरण। के अधम नर हैत जे एहि वातावरण केँ छोडि़ जाय चाहत!
हम एहन डरपोक छी से बुझल नइँ छल, मुदा रहै के हिम्मत नइँ जुटा सकलहुँ। से बड़ महँग किरायाक कारणें नइँ। किरायाक चिंता सँ तँ कुर्बान जी निश्चिंत भ’ जाइ लेल कहलनि! हम नाग-देवताक डरें रहबाक हिम्मत नइँ क’ सकलहुँ। चीन आ कोरिया वला पर्यटक लेल साँप बिलाइ-मूस सन मामूली चीज छल। साइबेरियन बर्ड आ जंगली जीव-जंतुक बीच साँपक आजाद घुमबाक हम विरोधी नइँ, मुदा ओकरा संग रहबाक हिस्सक नइँ तेँ कुर्बान भाइ केँ फेर अयबाक आश्वासन द’ हम वापस निकलि गेलहुँ। वापसी मे रौदक धाही कमि जाइक कारणें साँपक टहलब तेना बढि़ गेल छल जे जंगलक सीमा सँ बहराइ धरि तीन ठाम अजोध कारी नागक दर्शन भेल।
श्रीपुर चौक आबि राजू केँ आईसी पाँच सयक दू टा नोट देलियै तँ ओ बाजल—सर, हमरा लग छुट्टा नइँ छै।
हम कहलियै—तकर कोन दरकार छह? राखह।... कम तँ नइँ भेलह?
ओ विह्वल स्वरें बाजल—की बात करै छियै सर! तीन-चारि सयक तेल जरलो ने हेतै आ एतेक पाइ!
—तेल आ पाइक बात नइँ! तों नइँ रहितह तँ हम एत्ते देखि पाबितहुँ। तोहर आभारी छियह, राजू।
—यौ सर, अहाँ राति-बिराति जखन आयब... हमर खोज टा क’ लेब! हरदम अहाँ लेल तैयार रहब।
किछु काल बाद दूर सँ एक टा बस अबैत देखायल। हड़तालक समय मे बसक जल्दी भेटब राहत देलक। बस भरल छलै, मुदा जेना-तेना घुसलौं। भंटाबाड़ी नइँ उतरि सोझे बराज धरि चलि अयलौं।
बराज पर पहिनेक दुनिया बदलि गेल छलै। पूर्वी केनालक पूब तँ एकदम चीन्है जोग नइँ बुझायल। पूरा मार्केटक कायापलट! मुदा पछबारी कातक इलाका लगभग ओहिना छलै। पछबरिया कात हमर नजरि एक होटल दिस गेल आ डेग ओम्हर बढि़ गेल। समय साढ़े पाँचक करीब। बेरहटक बेर, मुदा भूख भोजनक। अंदर मे एक स्त्री काउंटर पर आ एक गाहकक कुर्सी पर बैसलि। हम बारी-बारी दुनू दिस ताकि एक कुर्सी पर बैसैत बजलहुँ—खाइ लेल की भेटत? ओ बाजलि—की खेबै? हम क्षण भरि रुकि बजलहुँ—गरम-गरम भेटय तँ माछ भात!
केओ किछु बाजल नइँ। कुर्सी पर बैसलि जनाना उठि भीतर कीचन दिस गेल आ खटर-पटर मे लागि गेलि। पन्द्रह-बीस मिनट बीतल हैत कि गरम-गरम भातक थारी आ भाप छोडै़त झोर मे कोसीक प्रसाद रेवा-बचबाक दर्शन भेल। एक टा प्लेट मे आलू बोड़ाक भुजिया आ एक कटोरी मे साग भुजल। शाकाहारी दुनू तरकारी ठंडा छल, मुदा सागक स्वाद अद्भुत। परसन मे माछ दैत काल ओहि जनाना सँ हम सागक नाम पुछलहुँ। सागक ओ नाम पहिले बेर सुनने रही से बिसरा गेल मुदा ओकर स्वादक तासीर जीह पर अनामति अछि।
भोजनक बादो कनी काल ओतहि बैसल रहलहुँ। ओकरा सब सँ गप करैक मन होइत छल। मुदा कोनो गप्पक उतारा मे एकाध शब्द सँ बेसी खर्च नइँ करै छलि ओ सभ। एहन शब्द-कंजूस जनाना हम पहिले बेर देखने रही। हमर भीतरक रेडार पर किछु संकेत भेल, मुदा आगाँक बात दोसर दिन लेल राखि ओत’ सँ बहरेलहुँ। बराज सँ दक्षिण-पश्चिम एक टा गाछ लगक एकांत मे ठाढ़ भ’ कोसीक जलक्रीड़ा देख’ मे तेना ने मगन भ’ गेलहुँ जे सूर्यास्त भ’ गेलाक कतेक बाद धरि ठाढ़े रहि गेलहुँ। घुरिक’ चेक पोस्ट सँ पहिने मंदिरक सोझाँक एक दोकान मे चाह पीबै लेल गेलहुँ। इच्छित बिना दूधक कारी चाह नीके सन भेटल। पूबभरक नवका बजारक कात मे ठाढ़ भ’ भंटाबाड़ी आकि भीमनगर जाइ वला वाहनक बाट बड़ी काल धरि तकैत रहलहुँ। हारिक’ अन्हार रस्ता पर डेग बढ़ा देलहुँ। कने आगू आबि झोड़ा सँ टार्च बाहर क’ लेलहुँ।
करीब आधा घंटा बाद, भीमनगर पहुँचै धरि, घामे-पसेने नहा गेल रही। भीमनगरक सहरसा चौक सँ बीरपुर लेल एक टा टेम्पू खुजि रहल छलै। दौडि़क’ बैसलहुँ। फेर कोनो टेम्पू भेटय कि नइँ भेटय!...






14 अगस्त, 2015, कोसी बराज


आइ कोसी मे हम रही आ हमरा मे कोसी। नाह, जाल, माछ आ लकड़ीक अलावा बहुत किछु खुखरी सँ संचालित होइत छै एत’। एक टा मलाह केँ दिन भरि जाल बुनै मे मगन देखलहुँ। की एहिना मगन भ’ हम सब साहित्यिक शब्द-जाल बुनै छी? एकरा जाल सँ मारल जयतै पापी पेट लेल असंख्य क्विंटल माछ!... हमरा शब्द-जाल सँ की मारल जायत?... सुधी पाठकक मनक भूख?... की सरिपहुँ हम सब पाठकक स्वस्थ मन लेल कोनो चिंता-कामना रखैत छी?
आइ हमरा संग कोसी छलि आ कोसी संग हम। एहन संग-साथक कथा प्राय: वर्णनातीत होइत छै आ सब वर्णनातीत दिनक बात-कथा डायरी मे लिखल नइँ जा सकै छै। किछु बात कथे-पिहानी टा लेल होइ छै। अस्तु...




15 अगस्त, 2015, सप्तकोसी, बीरपुर


आइ भोर सप्तकोसीक बालकनी सँ इस्कुलिया बच्चा सभक प्रभात फेरीक नव आधुनिक दृश्य देखल। मिथिला समाजक इस्कुलिया बच्चा सभक प्रभात फेरीक दृश्य देखना बीस साल सँ बेसी भ’ गेल। झंडा आ नारा तँ प्राय: ओहिना बुझायल, मुदा पँतियानीक आगू-पाछू स्कूलक नामक बड़का-बड़का बैनर लग्जरी गाड़ी सब पर तेना दिल्लीक जुलूस जकाँ चलि रहल छल जे पंद्रह अगस्तक प्रभातफेरी कम, स्कूलक प्रचार-अभियान बेसी लागि रहल छल। अवसर कोनो होअय, प्राइवेट स्कूलवला सभ फायदा उठेबे टा करत!...
तैयार भ’ कोसी दिस निकलैत काल बीरपुरक माहौल मे स्वतंत्रता दिवसक रंग-आभा आकि कोनो झलक नइँ अनुभव कयल। दिन भरि हम स्मगलरीक पेशा सँ जुड़ल किछु लोक आ ओकर ठेकान सब दिस घुमलहुँ। एक टा सेवा मुक्त सिपाहीक अनुभव वृतांत सुनलहुँ। दुपहरियाक भोजन बराज लगक ओही शब्द-कंजूस जनानाक होटल मे क’ क’ होटलक स्वामिनी संग मारते फुसि-सत्य बाजि ओकर सत्य जनबाक प्रयास कयलहुँ। अखरोटक आवरण जरूर सक्कत होइत अछि, मुदा भीतर केहन उत्तम सुकोमल फल रहैत अछि। प्राय: तेहने असंख्य करुण गाथाक खान छलि ओ दुनू जनाना। ओकर सत्य-कथा एत’ लिखब चौराहा पर नाँगट करबा सन बात हैत। अस्तु एहि मादे एतबे जे ओ दुनू साहस आ संघर्षक प्रतिरूप छलि।
पूर्वी केनालक पूब पुरना बजार वला जगह पर सजल नवका माछ-दारूक बजार आइ बेसी चहल-पहल सँ भरल छल। पंद्रह अगस्तक छुट्टीक कारणें दूर-दूर सँ अनेक छोट-पैघ गाड़ी मे भरि क’ मारते लोक बराज आ कोसी देख’ आयल छल। ओत’क माहौल पिकनिक स्पॉट वला भ’ गेल छलै। फुकना कि गोलगप्पा सन चीज भले नइँ बिकाइ छलै ओत’। रमन-चमन लेल बहुत किछु छलै। मुदा हमर रुचि ओहि पिकनिक मे कम, एक टा एहन स्त्रीक प्रतीक्षा मे छल जे निशा रानी कहाबै छलि। निशा रानी नशा-रानी सेहो छलि। ओ स्पेशली जापानी आ नाइजेरियन सौदागर लेल काज करै छलि। ओकरा पाँच-सात टा नाह छलै जकर उपयोग ओ अपना हिसाबें दुर्गम सँ दुर्गम आ वर्जित सँ वर्जित क्षेत्र धरि करैत छलि। हम अपना मनक इच्छा ओकरा कहलियै। बहुत टाल-मटौलक बाद ओ सशर्त तैयार भेलि। फेर ओकर आदेश भेल जे हम तत्काल ओहि इलाका केँ छोडि़ अपन होटल वापस भ’ जाइ आ फोनक इंतजार करी।
कोसी बराज कातक तखनुका दृश्य ततेक मनोरम छल जे छोडि़क’ जाइक इच्छा नइँ रहय, तैयो निकल’ लेल वाहन हेतु रोड कात अयलहुँ। एक टा मिनी ट्रक काठमांडू सँ घुरल रहय आ ओकर ड्राइवर गुटका-सिगरेट आ दारू आदि कीनै लेल उतरल छल। ओकरा सँ हम भंटाबाड़ी कि भीमनगर धरिक लिफ्ट मँगलहुँ। ओ कोलकाता वापस जाइत। से कहलक जे भीमनगर चेक पोस्ट सँ दस डेग पहिने धरि ल’ जायत। आगाँ चेक पोस्ट पर माल-वाहक वाहन मे तेसरक रहने जुर्माना लागि जयतै!...
तेँ चेक पोस्ट सँ सहरसा चौक धरि पैदले अयलहुँ आ ओत’ सँ टेम्पू ल’ बीरपुर।




16 अगस्त, 2015, दुपहर, कंकालिनी मंदिर परिसर, भारदह


विगत राति पहिने फोन आयल। फेर होटलक बाहर एक टा बाइक सवार भेटल। ओ जत’ छोड़लक ओत’ गाड़ीक हेड लाइट मिझाइते दू गोट आकृति सोझाँ आयल। ओकरा संग उबड़-खाबड़ अन्हार रस्ता पर गोटेक कोस चललाक बाद ठेहुन भरि पानि मे एक टा नाह लेने निशा रानी हमर बाट तकै छलि। हमरा बैसलाक बाद संग आयल दुनू गोटे दोसर दिस चलि गेल। निशा रानीक निर्देशानुसार हम कपड़ा बदलि एकदम मलाहक बाना ध’ लेलहुँ। ससरति आगू बढि़ रहल नाह कनेके काल बाद कोसीक मुख्यधारा मे आबि गेल छल। धाराक विरुद्ध किछु दूर चलल हैत फेर नाह कोम्हर जाइत रहय तकर ज्ञान हमरा प्राय: नइँ रहल। एखन हम ओकरा किछु ने पुछि रहल छलहुँ। सिर्फ आ सिर्फ वैह किछु-किछु काल पर एक टा नव प्रश्न पूछय आ हम एकदम सत्य-सत्य सब किछु ओकरा बतबैत गेलहुँ। करीब एक-डेढ़ घंटा बाद हम सब जत’ पहुँचलहुँ ओहि ठाम दू टा आरो नाह संग भेलै। ओकर थोड़ काल बाद दू टा अत्याधुनिक नाह लग अयलै जाहि मे चारि कि पाँच गोटे सवार छल। ओहि परहक सामान जल्दी-जल्दी एहि तीनू नाह मे राखल गेलै। हम निर्देशानुसार बिना किछु बजने सामान रखै मे मदति करैत गेलहुँ। नाह केर हिल-डोल मे हमर टाँग लडख़ड़ायल कैक बेर, मुदा रक्ष रहल खसलहुँ नइँ! तीन-चारि बेर हमरा चेहरा पर टॉर्चक इजोत सेहो क्षणांश लेल पड़ल, मुदा हम निर्देशानुसार चुप रहलहुँ। ओकरा सभक बीच जे गप भेल से हमरा ठीक-ठीक बुझबा मे कमे आयल।
चारि-साढ़े चारि बजेक करीब जखन अन्हार कने फाटि गेल छल आ भोरक धमक पूबरिया आसमान मे सेनुर छिडिय़ाबैक तैयारी मे रहल हैत कि निशा रानी हमरा एक किनार मे झौआ-कासक बीच उतारि देलक। हम कपड़ा बदलि वादा मुताबिक पाइ जेब सँ निकालि ओकरा हाथ मे देलहुँ। ओहि पाइ केँ ओ लग सँ देखलि आ अपने हाथें साधिकार हमरा जेब मे वापस रखैत बाजलि—जखनी सँ बुझलौं जे तों कोसी से परेम करै छऽ तखनी से हमर खुशीक ठेकान नइँ रहलऽ! लेकिन दुख जे तों चिन्ह नइँ सकलह हमरा! जा-जा, दिलक भाव-बट्टा नइँ होइ छै!
ओकर स्वर भखरल सन लागल आ हमर आँखि डबडबा गेल। ओ नाह दिस बढि़ गेलि। ओकर नाह देखिते-देखिते अदृश्य भ’ गेल। हमरा अपन स्थितिक भान भेल आ पुबरिया तटबंध दिस बढि़ गेलहुँ।




16 अगस्त, 2015, सप्तकोसी, बीरपुर


आइ कतहुँ निकल’क विचार नइँ छल। मुदा डुमरी चौक परहक टेम्पू वला केँ आब’ तँ कहलियै, मुदा रोकब बिसरि गेल रहियै। से आठ बजैत-बजैत ओ टेम्पू ल’क’ होटलक गेट पर हाजिर छल। हम जल्दी-जल्दी तैयार भ’ निकलि गेलहुँ। भीमनगर चौक पर पहुँचि कहलियै—हौ कोनो नव बाट घाट द’ क’ गढ़ी चलबह! ओ सहर्ष तैयार भ’ गेल। कटैया पावर हाउस सँ पूर्वी केनालक पुबरिया भित्ता धेने आगू बढ़लहुँ। आगाँ सँ एक टा सेफननुमा पुल होइत पूब सीतापुर आ पश्चिम गढ़ीक रस्ता जाइत छलै। मेन केनालक पश्चिमक रस्ता मे पुरना ढंगक पलारक झाँकी भेटल जे दक्षिण शिवनगरा, बायसी, परमानपुर, दौलतपुर-श्रीपुर धरि लागले चलि जाइत अछि। विशाल गोचर आ कास-डाभिक अछोर मैदान। एहि सब केँ पार करैत दसे मिनट भेल हैत कि समदा राजाक गढ़ी आबि गेल।
मंदिरक सोझाँ ऑटो रोकि हम पुरान लोकक खोज-पुछारि कयलहुँ। एक टा एहन बुढिय़ा भेटलि जे गढ़ी आ राजाक मादे प्रचलित संपूर्ण कथा सुनौलक। हम ओकर वीडियो बना लेलहुँ आ गढ़ीक अवशेष देखबा लेल जंगल मे पैसलहुँ। बचपन सँ जे कथा सुनने रही बस ओहि पर मुहर लागल! कोनो तेहन नव बातक जानकारी नइँ भेल। एक राजवंशक सर्वनाश एक टा नौआ कयल। आ ताहि संग कोसी-प्रलयक जुड़ाव! फेर नौआक लेल शाप! पौराणिकताक सब टा गुण हवा मे छिडिय़ायल! वर्तमान मे राजाक मंदिर, राजभवनक किछु खंडित अंश, भथाइत पोखरि आदि अपना आँखिए देखल सैह!...
दंतकथा: समदाक राजा एक बेर शिकार पर गेल। शिकार ओकरा पर्याप्त भेटलै। वापसी मे निकट आबि एक जगह राजा विश्राम कर’ लागल आ नौआ केँ राजमहल मे शुभ समाचार दै लेल आगाँ पठेलक। नौआक मन मे कोनो शत्रुता छलै आकि विरोधी सँ मिलल छल! ओकरा मन मे खुराफात सुझलै। से जहिना ओ पहुँचल तँ देखलक महलक बाहर इनार लग राजाक दुनू छोट-छोट बालक खेला रहल छल आ रानी विकलता सँ समाचार जनै लेल ठाढि़!...नौआ मुँह बनबैत कहलक—राजा तँ शिकार भ’ गेला!... दुखी रानी इनार मे कुदि गेलि। देखा देखी दुनू बालको कुदि गेल। राजा आयल आ वस्तुस्थिति जानि नौआ केँ शाप देलक जे राति एहि गाम मे सुतबें तँ सुतले रहि जयबैं! आ स्वयं सेहो इनार मे कुदि गेल। ओही राति तेहन भीषण बाढि़ आयल जे पूरा गढ़ी-राजमहल कोसीक बालु सँ तोपा ढहि ढनमना गेल। तहिया सँ केओ नौआ एहि गाम मे नइँ रहै अछि। कोनो शादी-ब्याह मे अबैतो अछि तँ सुतै कि बेसी काल रुकै नइँ अछि।...
समदा, भगवानपुर, रानीगंज होइत हमर ऑटो कटैया पावर हाउस सँ पश्चिमक बस्ती मे आबि गेल। ओत’ किछु एहन मजूर टाइप लोक सँ भेट करबाक छल जकरा ऊपर अनेक तरहक मोकदमा चलै छै। मुदा बड़ी काल एम्हर-ओम्हर खोज-पुछारि कयलो पर तेहन ककरो सँ भेट भेल नइँ। एसएसबी मे कार्यरत एक टा दिल्लीक छौंड़ा सँ एहि बीच गपशप होइ छल, ओ केनाल पर भेटि गेल अचानक। मुदा हाय-हेल्लोक बाद आगाँ बढि़ गेल। हमरा मन मे रातुक प्रभाव रहल हैत साइत! से बेसी देर नइँ रुकि ऑटो भीमनगर दिस बढ़ाबै लेल कहलहुँ।
सहरसा चौक पर कने नाश्ता क’ हम सब कोसी बराज पार क’ नेपाल मे घुसि गेलहुँ। पश्चिमी तटबंध सँ लागल मृगवन-परिक्षेत्रक किछु हाल-चाल एम्हर-ओम्हर सँ ल’भारदह पहुँचलहुँ। भारदहक कंकालिनी मंदिर परिसरक बाहर ऑटो रोकि हम मंदिर परिसर सँ लागल पार्क मे कने काल बैसलहुँ। मंदिर मे पूजा-अर्चना करय वला लोक सँ बेसी नव युगलक संख्या बुझायल। सेल्फी आ पेयर फोटोक कारबार पूजा सँ कम नइँ चलि रहल छल। बुझा गेल जे मंदिरक उपयोगिता एतहु बदलि रहल अछि। एक युगलक लीला मे कने काल नजरि बाझल रहल। फेर बैसल-बैसल निन्न जकाँ आब’ लागल। पाँच मिनट दूबि पर लेटलहुँ। कने काल डायरी मे दू-चारि पाँति टिपलहुँ। उठि क’ ऑटो मे अयलहुँ आ पाँचे-सात मिनट बाद बराजक पछबरिया कातक लाइन होटल पहुँचि गेलहुँ। महेशक होटल। एहि होटलक डिजाइन आ स्वरूप हमरा आकर्षित करैत अछि। एहि बीच एहि होटलक मालिक सँ दू-तीन बेर दूटप्पी गप भेल रहय। तखने कन्हा पर एक नेना केँ ल’क’ लूंगी पहिरने उघार देहें रोड पार करैत ओकरा देखि हम आवाज देलहुँ—हौ, महेश जी छह, हौ!
महेश घुरिक’ लग आयल। बाहर खूजल छोटका चौखड़ा मे लागल कुर्सी पर हम सब बैसलहुँ। पानिक बोतल संग एक टा करिया चाह सेहो आबि गेल। अपन हाल-चाल बता रहल महेश सहसा बाजल—सर, अहाँ लेल बढिय़ा माछ बना दै छी, लेकिन कने रुक’ पड़त। पोता केँ आँगन पहुँचा तुरंत अबै छी।
चाह हमर लगिचा गेल छल। हम महेशक साम्राज्य केर अनुमान करबा मे अपना केँ असमर्थ पाबि रहल रही। एत’ सात बेडक आवासीय व्यवस्थाक संगे भव्य होटल-रेस्टोरेंट-ढाबा-बार सब किछु कॉमन जकाँ दू बिगहा सँ बेसी मे परसल अछि। नेपाली स्टाइलक खाइ-पीब’क भव्य व्यवस्था। ओकर मकानक कुर्सी मे ईंटाक बदला दारूक खलिया बोतलक गजब उपयोग कयल गेल छलै। रोज सैकड़ो बोतल खाली होइ छलै आ प्रति बोतल कबाड़ मे एक टाका सँ बेसी की! कुर्सी-देबाल मे दू टा बोतल एक ईंट बराबरि जगह घेरै छलै। बालु-सीमेंट मिला जोड़ैयाक काज सेहो अपने सब बापुत मिलिक’ कयने छल। एक तँ सस्ता दोसर नव डिजाइनक। आधुनिकता आ देसीपनक संग-संग अद्भुत यूरोपीय लुक लेने। एत’ माछ-भातक तेहन डिमांड नइँ। एत’ फ्राइ माछ-मुड़हीक संग दारूक बिक्री समोसा, पकौड़ा आकि चाह-पानि जकाँ सरेआम भोरे सँ शुरू भ’ जाइत छल। नेपालक जीवन-रेखा बनल एहि नेशनल हाइवे पर बहुत दूरक बाद ई अपना ढंगक खास दोकान छल जत’ कोसीक ताजा रेवा-बचबा, इचना-टेंगरा सन अनेक तरहक माछक संग दारू पीबाक लेल आरामदायक सुविधा आ आँखिक लेल भव्य लैंडस्कैप छल। सब उमेरक छौंड़ा-छौंड़ी, जवान-अधेड़ जोड़ाक आँखि मदमस्त आ एक खास तरहक लापरवाही सँ भरल। अगल-बगल जे जतेक दोकान बराजक ओहि पार ओ सब महेशक भैयारी सभक थिक। बाहरी एको टा नइँ।...
हम महेशक साम्राज्य मे हेरायले भोजन कयने रही। ओकर माछ-भात मे तेहन खास बात नइँ छलै जे पूबरिया पारक होटलक दुनू जनानाक हाथक खाना मे छलै। हँ, बिल धरि एकर खूब तगड़ा छलै। ताबत महेश अपन पोता केँ आँगन छोडि़ घुरि आयल नव धोती-कुर्ता मे कुलीन जकाँ बनल आ बाजल—स्नान पूजा सेहो क’ लेलिए तेँ कने लेट भेल!
—बढिय़ा बात! आब इत्मीनान सँ गप हेतै।
—जी, जरूर।
—हमरा विस्तार सँ ई बताबह जे तों सब कोना एत’ अयलहक आ कोना एहन खतरनाक जगह पर अपन राजपाट कायम केलहक?
ओ कटैया पलार परहक दुखद गरीबी वला दिन केँ याद क’ तेना विह्वल भ’ गेल जे बड़ी काल ओही मे लगा देलक। फेर कटैया सँ भागि एत’ अबैक कथा आ ईहो जे कोना एहि जगहक चालि-प्रकृति भाँपलक। सात भाइ छल ओ आ सातो दरियादाग। जल्दी केओ ओकरा सब सँ भीड़ैक साहस करैवला नइँ। एत’ पहिने एक दोकान खोललक, फेर दू, फेर तीन आ फेर घर-आँगन सेहो आनि लेलक। रोडक एक कात घर दोसर दिस दोकान। एम्हर सँ अनेक तरहक चोर-डाकू-बदमाश सभक सेहो अबरजात, मुदा ओकर टोल टैक्स ओसुल’वला यैह सात भैयारी। एत’ कोनो पेट्रोल पम्प नइँ, मुदा डीजल-पेट्रोल सब भेटत। गैस, परचून सँ जे कोनो जरूरी चीज चाही, सब भेटत। राति-विराति हरदम। से एहन भेल जे बीस-पच्चीस वर्ष बीतैत-बीतैत सातोक अलग-अलग विशाल कारोबार भ’ गेल। सातो मिलिक’ मृगवनक मारते खाली जमीन कब्जा करैत गेल आ उपजा-बारी तँ खूब अछिए, माल-जाल सेहो खूब। आब दोसरो शहर-नगर मे पकिया सबूत वला बहुत रास चल-अचल सम्पत्ति अरजि लेलक।...
फेर हम पूछलहुँ—ई सब तँ ठीक। आब ई कह’ जे कोसी कात एते साल सँ छह। कोसी सँ कतेक-केहन संबंध?
मुदा ओ अपने झोंक मे छल। हम ओकरा सँ कोसी-कथा सुन’ चाहैत रही, मुदा ओ अपन वीरताक बखानक बीच मे व्यथा-कथा सेहो सुनाब’ लगल। जेना रन्नू सरदार कोसी-प्रेम बिसरि ऋचीक केँ गरियाबै मे आनंदित होअय!
हम कहलियै— हौ महेश! रन्नू सरदार बलवान होइतो गाधि राजाक चलाकी नइँ थाहि सकल। ऋचीक केँ बस माध्यम बनाओल गेल छलै आ सुख तँ सभक बहि गेलै कोसिक नोर मे!
महेश बातक मर्म नइँ पाबि कने बिलमल आ फेर रेड़ैत जकाँ बाजल—गुदानै तँ ककरौ ने छियै! डर एतबे जे मृगवन वला प्रोजेक्ट मे हमर सभक घर-दोकान जँ कटि गेलै तँ की करबै! कने लिखियौ ने अहाँ काठमांडूक अखबार मे?
—हौ महेश! मधेसी आंदोलन आ हड़ताल केँ कते दिन भेलह!... रोजे तँ नेपाल आ इंडियाक अखबार-टीवी मे आबि रहल छै सब टा बात-कथा। किछु असरि तकर बुझाइ छह तोरा?
—किछु ने किछु तँ हेबे ने करतै सर?
—से कोनो मृगवन विस्तार परियोजना आबि जाय, तोहर जडि़ नइँ हिला सकतह केओ!
—सर, जँ बराजे केँ उड़ा देलकै बम सऽ...? तखन त हमरा सब केँ फेर कटैया मे कुस उपाड़’ पड़तै!
—से तेहन किछु ने हेतै महेश! आसमान फाटै के चिंता करब बेकार!... फेर भंटाबाड़ी आ भीमनगर मे जे तोहर दोकान-मकान छह से विराटनगर-जोगबनी धरि सेहो पसरि सकै छै ने हौ। भ’ सकै छै एक दिन काठमांडू मे सेहो तोहर होटलक उद्घाटन होअय!
—सर अहाँ जोतसी से आगाँक बात कहि देलिऐ! आब काल्हि चलू चतरा! ओत’ नवका हाइवे आ कोसी पर बनल नवका पुल देखायब तखन अहाँ केँ चीनक तेसर आँखि लखा देत।
—सत्ते चलबह ने!... सोचि लैह, तीन-चारि घंटाक धंधा मारल जेतह!
—की कहै छिऐ सर! अहाँ लेल ई सब सोचबै। बारह कि एक बजे राति अहाँ फोन करब। हम कि हमर समाँग हाजिर रहत अहाँक सेवा मे। यौ सर जी, हम खराप काज बहुत केलियै, लेकिन भीतर खराप नइँ रखने छियै!
—अरे! दिल पर नइँ लैह! हमहू तोहर काठमांडू वला होटलक उद्घाटन पर एक कॉल पर आबि जयबह।
आ दुनू गोटे ठठाक’ हँसलहुँ।
रातिक बारह बजे मे कनेके बाकी अछि। बीरपुरक एहि होटल सप्तकोसीक वातानुकूलित कमरा मे निन्न नइँ आबि रहल अछि। भरि दिन गर्मी-पसेना, धूल-धक्कड़ मे कोसी काते-कात बौआइत छी, तैयो तेहन थकान नइँ अनुभव क’ रहल छी आ ने तेहन निन्न। जीवनक एकदम नव अनुभूति निन्न हरि लेलक। अपन जन्म स्थान सँ मात्र पंद्रह-बीस किलोमीटरक दूरी पर होइतो होटल मे रहि रहल छी आ दिन भरि जाहि गाम-ठाम जा-आबि रहल छी—कटैया सँ कुसहा धरि—ई सब हमरा गाम सँ पचास किलोमीटरक भीतरक इलाका थिक। तथापि लगै अछि कोनो दोसर दुनिया मे घुमि रहल होइ! हिमाचल आ उत्तराखंडक सुदूर पहाड़ खूब धाँगने छी, राजस्थानक ढाणी मे राति गुजारने छी आ छतीसगढ़क जंगल घुमल छी!... मुदा एत’ जाहि तरहक अनुभूति भ’ रहल अछि से सिद्ध करैत अछि जे हम शुरू सँ अपना गाम-घरक सब सँ लगीचक दुनिया केँ ओते नीक जकाँ नइँ देखने-भोगने छी!... आ यैह पीड़ा हमरा आँखि सँ निन्न केँ दूर कयने अछि। ई बात हमरा व्यथित क’ रहल अछि जे हम अपन किशोरावस्था व्यर्थ गमा देल। ओह! बचपन मे केओ बतौने रहितथि जे अपन जन्मभूमिक चारू कातक दुनिया—खासक’ सय-पचास किलोमीटरक भीतरक दुनिया—केँ बेसी सँ बेसी देखब, परखब आ जानब जरूरिए नइँ एकदम आवश्यक होइत अछि!... तखने अहाँ बाहरक दुनिया नीक जकाँ जानि सकै छी जँ अहाँ अपना चारूकातक ऋतुचक्र संग माटि-पानि, गाछ-बिरिछ, चिड़ै-चुनमुनी, पशु आ मनुक्ख केँ बढिय़ा जकाँ जनैत होइ!...




17 अगस्त, 2015, भीमनगर


पासवान जी कहियो भीमनगर थानाक चौकीदार रहल हैत, आब बोर्डरक आर-पार करैत बुढ़ारी काटि रहल अछि। आइ भोर जखन ओकरा घर सँ बातचीत क’ निकलैत रही तँ पूछलक—हौ सर जी, 'कलचल’ मतलब की होइ छै?
हम चौंकलहुँ! भेल कोनो नेपाली शब्द हैत। कहलियै—हौ, ई शब्द हम पहिले बेर सुनि रहल छियह। ओना बात की से तँ बताबह!
—हे हौ, ओम्हरका जे अंगरेजिया सब आबै छै ने, ओ सार सब अपना मे गिटिर-पिटिर करैत कहतऽ... ईहाँ का 'कलचल’ ही खराब है!...
—'कल्चर’ तँ नइँ कहै छै?
—हँ, उएह!
—एकर माने समझायब सत्ते कठिन छ! ओना अपना भाषा-बोली मे एकरा 'संस्कृति’ कहै छै।
—सन्सकीरीतक बौह भेलै हौ?
—मानि सकै छह!... संस्कृत भाषा थिकै और संस्कृति जीवनक कलात्मक विधान आकि संस्कार।
हमरा मन पड़ल जे किछु साल पहिने हमर एक मित्र 'सुपौल जिलाक संस्कृति’ विषय पर जिला प्रशासनक कोनो स्मारिका लेल एक टा लेख माँगने रहय आ से हम नइँ द’सकल रही। मुदा एकरा टारब अनुचित होइत। एक तँ ई हमरा बहुत दुर्लभ जानकारी सब देने छल, दोसर एकरा लेल ई जानब एहू लेल जरूरी छल जे केओ एकर अज्ञानताक चलते एकर अपमान क’ रहल छलै आ ई बुझि नइँ पबै छै।
ओकरा बतायब हमरा कठिन लागिए रहल छल। समाजशास्त्रीय आ नृशास्त्रीय पद्धतिक एक तँ हमर ज्ञान तेहन नइँ फेर ओ शब्दावली एहि ठाम कोनो काजक नइँ छलै। धखाइत-धखाइत हम कहलियै—हौ पासवान जी, 'कल्चर’ बुझहक आकि 'संस्कृति’ ई अपना ठामक समाज मे रहैत हमर-तोहर जीवन जीबैक तरीका थिक। रहन-सहन आ रंग-ढंगक सलीका बुझह। समाज मे रहैत कोनो काज करै, खाइ-पीबै, पहिरै-ओढ़ै, बोलै-बतिआबै, नाच-गान करै कि देखै आ सोचै के हमर-तोहर अपन एकदम खास तरीका!...
अचानक पासवान जीक चेहराक भाव बदलि गेलै। ओ व्यथित होइत बाजल—तखन त ओ सार गारि पढ़लक हौ! कहै के मतलब जे ओकरा अपने टा सब किछु नीक लागै छै, हमरा सभक बाजब-भूकब, खायब-पीब, पहिरब-ओढ़ब ओइ सार केँ खराप लागै छै!...
—बस-बस! एकदम सही पकड़लहक!...
संस्कृति मादे महत्त्वपूर्ण-विस्तृत जानकारी देब हमरा सँ संभव नइँ भेल छल! मुदा छोट सन एक जानकारी ओकर आँखि खोललकै, से धरि हमरा बुझायल। जखन कि हम ओकरा एतबो ने बता सकलहुँ जे अघायल लोकक संस्कृति अलग होइ छै, भूखल लोकक संस्कृति अलग। एक अधकपन मे हरदम भखसैत रहै छै, एक अपन लगन सँ हरदम खटैत। राजा(सत्ता)क संस्कृति अलग होइ छै आ प्रजा(जनता)क संस्कृति अलग होइ छै। शासक आ शासितक अलग-अलग। संस्कृति आ अपसंस्कृतिक संवाहक एक-दोसराक विरोधी होइत छै। संस्कृति सीखल जाइ छै कि गतिशील होइ छै, कि संस्कृति सदति विकासशील होइ छै। संस्कृति पोखरि-डबराक पानि नइँ, कोसीक कल-कल छल-छल करैत जलधारा जकाँ निरंतर बहैत रहबाक नाम थिक!... एहन सन किछु ओकरा बता-समझा नइँ सकलहुँ तकर हमरा दुख अछि। हमरा दुख अछि जे हमर ज्ञान तेहन काजक नइँ अछि।




21 अगस्त, 2015, कालिकापुर


पछिला तीन दिन हमर स्थिति ओहि मलाह जकाँ छल जे रहैत तँ हरदम पानिए मे अछि मुदा नहबैक पलखति नइँ निकालि पबै अछि। एहि बीच हम चाहे जाहि कोनो घाट कि बाट रहलहुँ, बेसी काल लिखैत रहलहुँ कि सोचैत रहलहुँ। ई लिखब दोसर तरहक छल जे डायरीक सीमा मे नइँ अँटि पबैत।... से डायरीक पन्ना सभ गाजियाबाद जकाँ लगातार खालिए जा रहल अछि।
आइ गाम आयल छी। जखन मन हैत एतहुँ सँ फेर-फेर सगरे जाय-आबि सकै छी। चतरा, बाराह क्षेत्र सब सँ तँ भ’ अयलहुँ! मुदा सुदूर नेपाल मे कोसी जोन के अंतर्गत धनकुटा, ताप्लेजुंग, खाँदबारी, आहाले, आँखिसल्ला सन किछु महत्त्वपूर्ण जगह सेहो जयबाक मन अछि। जायब जरूरे मुदा जाबत कलम चलि रहल अछि किछु और सोचब बेजाय!...




28 अगस्त, 2015, कालिकापुर


एक सप्ताह सँ खूब एकांत भेटल। मुदा आब नइँ भेटत। काल्हि-परसू किछु मित्र लोकनि औताह। 31क भोरे वापसी अछि। फेर तँ गाजियाबादक जंजाल मे तेना ओझरा जायब जे हमरा भीतरक रचनाकार जेल चलि जायत।
हमर लेखन कनेके भेल, बहुत कम। शुरुआत मात्र। आब ई रुकल रहत। कते दिन?... कते मास?... नइँ पता!...




29 अगस्त, 2015, कालिकापुर


आइ मैथिलीक वरिष्ठ कथाकार सुभाष चंद्र यादव आ कवि-मित्र केदार कानन हमरा गाम अयलाह। बड़ खुशी भेल। ओहिना जेना अहाँक अपन बहुत प्रिय-आत्मीय समाँगक अयने खुशी होइत अछि। बहुत दिन पर इत्मीनान सँ गप्पशप करबाक एहन अवसर भेटल छल।
हम अपना डायरीक बीच किछु लूज पन्ना सेहो रखैत छी। एहने तीन टा तिथि-विहीन पन्ना आइ भोर हाथ आयल। पहिनेक लिखल, कवितानुमा डायरी!... सोचने रही सुभाष भैया आ केदार जी केँ सुनेबनि! मुदा हुनका लोकनिक रहैत से मने ने पड़ल।


पहिल पन्ना
बिसरि जायब बस मे तँ नइँ...


बिसराइत कहाँ अछि ओ कारी राति प्रलयक
मुसलाधार बरखा
उद्दाम लहरि बीच संघर्ष करैत नाह
पानि उपछै आ चप्पू चलबैक ओ निरंतर प्रयास
दोहाइ कोसी मैया! के आर्त्त पुकार


बाँसक झुरमुट पँक्तिबद्ध
साँझक धोन्हि मे टोलक उपर लखाइत धुआँक सामियाना
कोसी पानिक कल-कल छल-छल...
अपन बछिया केँ तकैत गाय सभक डिडि़आयब
किछुओ तँ नइँ बिसरि सकलहुँ अछि


प्रवासक भीड़ मे अनचोक्के
धानक शीश सँ झड़ैत ओस कण चमकैत अछि
श्यामल मजूरिन एक अल्हडि़
घाम सँ भीजल लाल ब्लाउज आ ललाट सँ चुबल रक्तिम बुन्न पारा-मिश्रित
कदलीवन सँ लागल तुइतक पँतियानी
काँच आम आ डम्हा लताम
आर-आर मनोहर मनोरम भू-दृश्यक संग—
दप-दप बालु पर खूनक टघार
दबल-घोंटल एक टा चीत्कार झौआ कासक जंगल मे
पथरायल आँखिक सूखल परदा


बिसरैक लाख प्रयत्न कयल डेग-डेग पर भेल अपमान
बिसरय चाहलहुँ नेनपन मे खायल चोट
छल फरेब नफरत आ फटकारक अंतहीन कथा-प्रसंग
अपनहुँ कयल नादानी आ शैतानी


अहाँक सक्कत स्तन मे धँसल गोली
घाट सँ लागल नील अकड़ल देहक स्पर्श
बिसरि जायब बस मे तँ नइँ।...






दोसर पन्ना
जल्ली धान
(माँक लेल)


भादो अबैत जखन घरक अगहन्नी चाउर खतम भ’ जाइत
गहूम धरि बचि जाइत थोड़बे
पाबनि-तिहार आ हारी-बेमारी मे पथ्य जोगर
जखन नित्य मड़ुआ रोटी खाइत-खाइत आजिज भ’ जाइ
ओहेन दुर्दिन मे जल्ली कटिते बड्ड राहत भेटय


उसिनय-सुखाबय सँ ढेकी उक्खरि मे कूटय-छाँटय धरिक
सब काज जतन पूर्वक उत्साह आ लगन सँ
एक टा राग सेहो छल बचल गीतक संग


लाल लाल भात एकदम नवका चाउरक
अद्भुत मीठास
घीबक टाँसल सन स्वाद
ओहि संग कंचूक घटरा
नेबोक रस मे पकाओल हरियर मेरचाइ नोनक संग
की स्वाद छल! अद्भुत! लाजवाब


भादो मे ओकर हैब केहन अपराध छल
जे पाहुन केँ नइँ परसल जाइत छल
जे पाहुन केँ ई परोसब होइत घरक अपमान
संभ्रांत कुलीन संपन्न कहेबाक संपूर्ण ड्रामा
जलील क’ दैत जल्ली


आब ओ धान कतहुँ ने भेटैत अछि
कोसी कमला बलान सँ परमान धरि
हिमालय सँ गंगा धरि
विलुप्त भ’ गेल ओ
आरो अनेक नीक बात नीक चीज जकाँ




तेसर पन्ना
नेपाल बाटे
(रमेश रंजन लेल)


पाठ्य पुस्तक मे पढऩे छलहुँ—
उत्तर मे ठाढ़ हिमालय प्रहरी जकाँ
लोकगीत सब मे सुनने रही—
पूब देस कलकत्ता जकाँ मोरंग जाइत छल लोक कमाबै लेल
'सूर्य अस्त नेपाल मस्त’ एक जुमला भरि नइँ छल


नेपालो मे हमरे सब सन लोक रहैत अछि
किछु-किछु हमरा सब सँ बेसिए परिश्रमी
नेपाली मैथिली नेबारी मे कहाँ अछि राँरि
बेरोक टोक एम्हर-ओम्हर जाइ-अबै छी दुनू दिस सँ
दैत कहाँ छी ओते जते लैत छी


नेपाल बाटे
अबैत अछि कोसी आ अनेक नदी
जमीन जंगल आ सकल जन जीवनक कारबार चलैत अछि ओकरे पानि पर
ओ पानि जे मात्र पानि नइँ थिक
खेत लेल सब साल पाँकिवला नवका माटि
किसिम-किसिमक माछ
अनेक तरहक वनस्पतिक बीया भसाक’ अनै अछि
मैदान लेल पहाड़क सनेस जकाँ
मुदा हम सब मन रखै छी मात्र बाढि़ सँ भेल विनाश


अफीम चरस गाँजा सन मादकक तस्करी हम सब करै छी
चीन, जापान, कोरियाक चीज हम सब टपबै छी बोर्डर
जोगबनी, रक्सौल, जयनगर, भंटाबाड़ी सँ—
कने चीनी, किरासन तेल ओम्हरो चलि जाइत होअय
नेपाले बाटे पहुँचैत अछि—
सखुआक मजगूत लकड़ी जकाँ
बंबई-दिल्लीक रईश सभक लेल 'लड़की’
गंगाजल मे कतेक अछि नेपालक जल
ई जाँचक विषय थिक
ओना 'इंडिया’क सब जाँचक आँच मे नेपालो तपैत अछि




30 अगस्त, 2015, कालिकापुर


आइ सहरसा सँ राजेन्द्र कृष्ण अयलाह। जखन हम घरक काज आरंभ कयने रही आ रह’ लेल अपन घर नइँ रहय तखनो ई आयल छलाह आ आम गाछक नीचा बैसि चाह पीबिक’ गेल छलाह। ई वल्र्ड बैंकक सहयोग सँ संचालित बिहार सरकारक एनजीओ'जीविका’ मे सहरसा कमिशनरीक डीपीएम छथि। पहिल भेंट 'अंतिका’क आरंभ काल मे भेल छल जखन ई दिल्ली मे पब्लिक सर्विसक तैयारी करैत छलाह। हिनका सँ ई जानि प्रसन्नता भेल जे 'जीविका’ एत’ स्त्रीगण केँ स्वाबलंबी बनेबाक दिशा मे किछु सार्थक डेग उठौलक। मिथिलाक कुलीन परंपरा तँ स्त्रीगण केँ पानक लत्ती बनौने राख’ चाहैत अछि। कोसी गीत तँ खूब गबै छथि एत’क दाइ-माइ, ओहने प्रचंड साहसी बनि किऐ ने ठाढि़ होइ छथि?...




31 अगस्त, 2015, गरीबरथ, बदला-धमहारा घाट पार करैत


कोसी पार क’ बदला-धमहारा घाट बीतैत-बीतैत हमरा बुझायल जेना पच्चीस दिनक यात्रा मात्र नइँ बीतल, एक जन्म बीति गेल!...
भोरे निकलल रही गाम सँ सिमराही, पिपरा, सिंहेश्वर, मधेपुरा होइत सहरसा टेम्पू सँ। गाम अयने जेना टेम्पू हमर प्रिय वाहन भ’ गेल होअय आ धार-कोन मनक प्रिय ठहार। मुदा से सब आब अतीत भ’ गेल—ट्रैन मे बैसलाक बाद जेना ई परिवर्तन शुरू भेल!... आ से कोसी पार करैते पूरा भेल! टेम्पूक आवाज, कोसीक छवि-छटा, कोसिकन्हाक समस्त मनोरम बिम्ब-प्रतिबिम्ब पर दिल्ली-गाजियाबादक काज-रोजगारक चिंता एकाएक सवार भ’ गेल।
ट्रैन मे माँ सेहो अछि! मुदा ककरो सँ गप करबाक मन नइँ! आँखि बंद क’ फेर ध्यान पाछु दिस ल’ जाय चाहलहुँ।... मुदा सब प्रयत्न बेकार!... मोखाक माटि बेअसर होइत बुझायल!...



संपर्क : सी 56 / यू जी एफ 4
शालीमार गार्डन एक्स 2, गाजियाबाद-201 005
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Tuesday 29 December 2015

विश्व पुस्तक मेला के अवसर पर जनवरी, 2016 में अंतिका प्रकाशन से जारी हो रहीं महत्वपूर्ण किताबें













 जो मर कर भी अमर हैं (जीवनी-संस्मरण) : स. सुरेश सलिल 
क्रांतिकारी शहिदों की जीवनी और संस्मरण की किताब. करतार सिंह, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चन्द्रशेखर आज़ाद सहित एक दर्जन से ज़्यादा क्रांतिकारियों के जीवन और संघर्ष की दास्तान. सत्तावनी दिल्ली के खूनी दिन से काकोरी के अमर शहिदों की जीवन गाथा तक...
तुलसीराम व्यक्तित्व और कृतित्व (संस्मरण/आलोचना) : स. श्रीधरम
वरिष्ठ दलित लेखक और चिंतक तुलसीराम के समग्र जीवन और लेखन पर केन्द्रित किताब. उनके समकालीन और करीबी जनों के संस्मरणों के साथ ही मूल्यांकन खण्ड में विद्वान लेखकों-आलोचकों के आलोचनात्म लेख. मुर्दहिया से मणिकर्णिका तक का समग्र मूल्यांकन और उनके कुछ बेहद चर्चित लेख भी.
तुमि चिर सारथि (नागार्जुन-आख्यान) : तारनन्द वियोगी
जन कवि नागार्जुन के जीवन का आत्मीय आख्यान. लम्बे समय तक उनके सान्निध्य में रहे मैथिली के प्रखर रचनाकार तारानन्द वियोगी ने बहुत आत्मीयता के साथ नागार्जुन के अंतरंग-संसार का रोचक संस्मरण इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है.
अंधेरा भारत (आत्म-कहानी) : रामजी यादव
पुलिसिया दमन के शिकार साधारण जन की आत्म-कहानी. वाराणसी और आसपास के इलाके के ईंट भट्ठे में काम करने वाले दलित मजदूर, खासकर मुसहर समाज, के लोगों के उत्पीडन से जुडी दर्दनाक गाथा है इस पुस्तक में. भुक्तभोगियों की आत्म कहानी.
मानव संसाधन प्रबंधन के अनुभूत आयाम (मानव-संसाधन) : राम जनम सिंह 
मानव संसाधन प्रबंधन विषय पर हिन्दी में यह पहली किताब है. कारपोरेट जगत में काम करने वाले युवाओं के लिए बेहद उपयोगी. हिंडाल्को में 35 वर्षों की सेवा के अनुभवों को लेकर लेखक ने सहज रोचक भाषा में इस किताब की रचना की है.
दाह (दलित आत्मकथा) : ल. सि. जाधव 
मराठी के उपन्यासकार ल. सि. जाधव की आत्मकथा. मराठी में पहले से चर्चित दलित आत्मकथा का हिन्दी संस्करण. मतंग समाज की समग्र और विश्वसनीय अनर्कथा. जीवन-संघर्ष के साथ ही जीवन-दर्शन से युक्त. बेहद पठनीय और बहसतलब आत्मकथा.
फिरंगी ठग (उपन्यास) : राजेन्द्र चन्द्रकांत राय 
ठगों के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास. पीले रुमाल वाले ठगों का कभी हमारे देश पर गहरा आतंक रहा है. बड़ी ही रहस्यपूर्ण और भयानक थी उनकी दुनिया. अपराध के क्रूरतम संसार के सत्य को स्लीमन की रपटों से निकालकर यह उपन्यास अपने पाठकों को नए सत्य से परिचित कराता है. शिल्पगत प्रयोगों और भाषा की रवानी ने इसे एक अलग आभा प्रदान की है. पढ़ते हुए प्रतीत होता है जैसे हम खुद भी तुपॉनी के गुड का लुत्फ लेने लगे हैं.
छिन्नमूल (उपन्यास) : पुष्पिता अवस्थी 
छिन्नमूल औपनिवेशिक दौर में बतौर गुलाम सूरीनाम गए भारतवंशी किसान-मज़दूरों की संघर्षगाथा के साथ-साथ वहाँ की वर्तमान जीवन-दशा, रहन-सहन, रीति-रिवाज और सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को उद्घाटित करने वाला हिन्दी का पहला उपन्यास.
कोई दीवार भी तो नहीं (कविता-संग्रह्) : सुरेश सलिल 
वरिष्ठ कवि सुरेश सलिल की पिछले दस वर्षों में लिखी गईं कविताओं का संग्रह.
मैं भी जाऊँगा... (कहानी-संग्रह्) : गंगा प्रसाद विमल
महत्वपूर्ण लेखक गंगा प्रसाद विमल का कहानी-संग्रह. जहाँ दूसरे आंदोलनी लेखकों का लेखन एक समय के बाद थम सा गया वहीं इनके लेखन में कभी विराम नहीं आया जिसका प्रमाण है हाल ही में प्रकाशित उनके उपन्यास और अब यह कहानी-संग्रह 'मैं भी जाऊँगा'।
गुलामों का गणतंत्र (कहानी-संग्रह्) : राजेन्द्र चन्द्रकांत राय 
वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र जी का एक बडे अंतराल पर आया महत्वपूर्ण कहानी-संग्रह.
गोबरहा (दलित आत्मकथा) : विश्वनाथ राम 
गोबर से अन्न निकाल कर जीवन-यापन करने वाले लेखक की संघर्षमय जीवन कथा. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर इलाके से आने वाले लेखक ने अपने दलित-जीवन की संघर्षगाथा खूद लिखी है...

चार महत्वपूर्ण कथाकार जिनका पहला संग्रह जारी हो रहा है :
* पहला रिश्ता : दीर्घ नारायण 
* अवाक् आतंकवादी : अजय सोडानी
* वाट्स एप पर क्रांति : अनुराग पाठक
* लुटिया में लोकतंत्र : राजेश पाल
तीन् महत्वपूर्ण कवियों का पहला संग्रह : 
*  समुद्र से लौटेंगे रेत के घर : अमेय कांत 
* हथेलियों पर हस्तारक्षर : आभा दूबे
* अब और नहीं : रामचन्द्र प्रसाद त्यागी
कुछ और महत्वपूर्ण किताबें आ रही हैं: 
* कलम की काकटेल (विविध लेख्-संग्रह) : शारदा शुक्ला 
* समय और समय (कविता-संग्रह) : दुर्गाप्रसाद झाला 
* शूद्र : त्रिभूवन
* इर्द गिर्द अपने (कविता-संग्रह) : कृष्णकांत * भोजपत्र (कविता-संग्रह) : पुष्पिता अवस्थी 
* कविता में सब कुछ सम्भव (कविता-संग्रह) : शैलेन्द्र शैल

Thursday 8 November 2012

दाग (उपन्‍यास) : गौरीनाथ


बहुत दिन भेल, एक्कैस वर्ष, मातृभाषाक प्रति अनुरागक एक टा विशेष क्षण मे मैथिली मे लिखबाक लेल उन्मुख भेल रही—1991 मे— एहि एक्कैस वर्ष मे लगभग दू गोट कथा-संग्रह जोगर कथा आ दू गोट वैचारिक (आलोचनात्मक, संस्मरणात्मक आ विवरणात्मक) पुस्तक जोगर लेख यत्र-तत्र प्रकाशित आ छिडि़आयल रहितो ओकरा सभ केँ पुस्तकाकार संग्रहित करबाक साहस एखन धरि नइँ भेल। ई प्राय: अनके कारणेँ, जकर चर्चा बहुत आवश्यक नइँ। मुदा, ई उपन्यास एहि लेल पुस्तकाकार अपने सभक समक्ष प्रस्तुत क’ रहल छी जे एकरा पत्र-पत्रिका द्वारा प्रस्तुत करबाक सुविधा हमरा लेल नइँ छल। मुदा हमरा लग ई विश्वास छल जे मैथिलीक ओ पाठक वर्ग पढ़’ चाहताह जे प्राय: तेरह वर्ष सँ 'अंतिका’ पढ़ैत आयल छथि। मैथिली पत्रकारिताक दीर्घकालीन ओहि इतिहास—जे मैथिली पत्रिका पाठकविहीन आ घाटा मे बहराइत अछि—केँ फूसि साबित करैत जे पाठक वर्ग 'अंतिका’ केँ निरंतर 'घाटारहित’ बनौने रहलाह हुनक स्नेह पर हमरा आइयो विश्वास अछि। निश्चये ओ पाठक वर्ग हमर उपन्यास सेहो कीनिक’ पढ़ताह आ हमर पुरना विश्वास केँ आरो दृढ़ करताह।
—लेखक



Price : 150.00 INR
स्त्री आ शूद्र दुनू केँ हीन आ मर्दनीय मान’वला कुसंस्कृतिक अवसानक कथा जे अपन तथाकथित 'ब्रह्मïशक्ति’क छद्ïम अहंकार मे परिवर्तनक ईजोत देखिए ने पबै यए...जखन देख’ पड़ै छै तँ पाखंडक कील-कवच ओढि़ लै यए, अहुछिया कटै यए, घिनाइ यए  आ अंतत: एक टा 'दाग’ मे बदलै यए जे कुसंस्कृतिक स्मृति शेषक संग परिवर्तनक संवाहक, स्त्री आ शूद्रक, संघर्ष-प्रतीक सेहो अछि।
उपन्यास पठनीय अछि, विचारोत्तेजक अछि आ मैथिली मे बेछप।

—कुणाल
गौरीनाथ मैथिलीक चर्चित आ मानल कथाकार छथि। पठनीयता आ रोचकता हिनकर गद्य मे बेस देखाइत अछि। माँजल हाथेँ ओ ई उपन्यास लिखलनि अछि। गौरीनाथ मैथिली साहित्यक आँगुर पर गनाइ वला लेखक मे छथि जे जाति-विमर्श केँ अपन विषय वस्तु बनौलनि। आन भारतीय भाषा मे साहित्यक जे लोकतांत्रिकीकरण भेल, तकर सरि भ’क’ हेबाक मैथिली एखनो प्रतीक्षे क’ रहल अछि। ई उपन्यास मैथिली साहित्यक लोकतांत्रिकीकरण लेल कयल एक टा सार्थक आ सशक्त प्रयास अछि।
    'दाग’ अनेक अंतद्वंद्व सबहक बीच सँ टपैत अछि विश्वसनीयता, रोचकता आ लेखकीय ईमानदारीक तीन टा तानल तार पर एक टा समधानल नट जकाँ। एत’ सामंतवाद आ ब्राह्मणवादक मिझेबा सँ पहिनेक दीप सनहक तेज भ’ जायब देखाइत अछि। धुरखुर नोचैत नपुंसक तामस आ वायवीय जाति दंभ अछि। नवतुरियाक आर्थिक कारणेँ जाति कट्टरताक तेजब सेहो। दलित विमर्श अछि, ओकर पड़ताल सेहो। दलितक ब्राह्मणीकरण नहि भ’ जाय, तकरो चिंता अछि। दलित विमर्शक मनुष्यतावाद आ स्त्रीवादक नजरिञे पड़ताल सेहो।
    आकार मे बेसी पैघ नहियो रहैत एहि मे क्लासिक सब सनहक विस्तार अछि अनेक रोचक पात्रक गाथाक बखान संग। आजुक मैथिल गाम जेना जीवंतता सँ एहि उपन्यासक पात्र बनि केँ सोझाँ अबैत अछि, से अनायासे फणीश्वरनाथ रेणु केँ मन पाडि़ दैत अछि। गामक नवजुबक सबहक दल यात्रीक नवतुरियाक योग्य वंशज अछि।
    जँ आजुक मिथिला, ओकर दशा-दिशा आ संगहि ओत’ होइत सामाजिक परिवर्तन रूपी अमृत मंथनक खाँटी बखान चाही, तँ 'दाग’ केँ पढ़ू।
    एहि रोचक आ अत्यंत पठनीय उपन्यासक व्यापक पाठक समाज द्वारा समुचित स्वागत हैत आ गाम-देहात सँ ल’क’ नगर परोपट्टा मे एहि पर चर्चा हैत, एहेन हमरा पूर्ण विश्वास अछि।
—विद्यानन्द झा
स्त्री आ दलित एहि दुनू विमर्श केँ एक संग समेट’वला उपन्यास हमरा जनतब मे मैथिली मे नहि लिखल गेल अछि। ई उपन्यास एहि रिक्ति केँ भरैत भविष्यक लेखन लेल प्रस्थान-विन्दु सेहो तैयार करैत अछि।
    'दाग’ अपन कैनवास मे यात्रीक 'नवतुरिया’ आ ललितक 'पृथ्वीपुत्र’क संवेदना केँ सेहो विस्तार प्रदान करैत अछि। ताहि अर्थ मे ई मैथिली उपन्यास परंपराक एक टा महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हैत। 'नवतुरिया’क 'बम-पार्टी’क विकास-यात्रा केँ 'गतिशील युवा मंच’ मे देखल जा सकैत अछि। जाति, धर्म, लिंग आदि सीमाक अतिक्रमण करैत मनुष्य ओ मनुष्यताक पक्ष मे लेखकीय प्रतिबद्धताक प्रमाण थिक सुभद्रा सनक पात्रक निर्माण जे अपन दृष्टि सँ जातीय-विमर्श सँ आगाँक बाट खोजैत अछि, 'पहिने मनुष्य बचतै तखन ने प्रेम!’
    अभिनव कथ्य आ शिल्पक संग मिथिलाक नव बयार केँ थाह’वला उपन्यास थिक 'दाग’।
—श्रीधरम



उसार-पुसार


ई उपन्यास हम लगभग दस वर्ष पहिने लिखब शुरू कयने रही। 2003 मे। एक्कैसम शताब्दीक नव गाम मे तखन धरि जे किछु थोड़ेक सामाजिकता बचल छल, एहि बीच सेहो खत्म जकाँ भ’ गेल। खगल केँ के देखै यए, हारी-बीमारी धरि मे तकैवला नइँ! अहाँक नीक जरूर दोसर केँ अनसोहाँत लगै छै। लोभ-लिप्साक पहाड़ समस्त सम्बन्ध आ हार्दिकता केँ धंधा आ नफा-नुकसान सँ जोडि़ देलक अछि।...गाम सँ बाहर रह’वला भाइ-भातिज केँ बेदखल करबाक यत्न बढ़ल अछि। खेती-किसानीक जगह व्यापार आ बाहरी पाइ पर जोर। सुखितगर होइते लोक शहर जकाँ आत्मकेन्द्रित भ’ रहल अछि आकि नव तरहक दबंग बनि रहल अछि, नंगटै पर उतरि रहल अछि। संगहि की ई कम दुखद जे जाति-धर्म, पाँजि-प्रतिष्ठा सनक मामिला मे एखनो; थोड़े कम सही; उग्र कोटिक सामाजिक एकता, आडम्बर आ शुद्धता देखाइते अछि?...
सवर्ण समाज दलित-अछूतक कन्या पर अदौ सँ मोहित होइत रहल आ एम्हर आबि विवाह आदिक सेहो अनेक घटना सोझाँ आयल। मुदा दलित युवकक संग गामक सिरमौर पंडितजीक कन्याक भागि जायब, घर बसायब आ ओकर स्वावलंबी हैब पागधारी लोकनि केँ नइँ अरघैत छनि तँ एकरा की कहबै?
खेतिहर समाज लेल खेती-किसानी सँ बढि़ ताग आ पाग कहिया धरि रहत से नइँ कहि सकब!...
ओना मिथिला-मैथिल-मैथिलीक मामिला मे 'पूबा-डूबा’क हस्तक्षेप पश्चिमक श्रेष्ठता-ग्रंथि केँ कहियो स्वीकार्य नइँ रहल—खासक’ शुद्धतावादी लोकनि आ पोंगा पंडित लोकनि केँ!...
निश्चये ओहेन व्यक्ति केँ मैथिल समाजक ई पाठ बेजाय लगतनि जे मनुक्ख आ मनुक्ख मे भेद करै छथि, एक केँ श्रेष्ठ आ दोसर केँ हीन बुझैत छथि!...
सिमराही-प्रतापगंज-ललितग्राम-फारबिसगंज बीचक आ कात-करोटक 'पूबा-डूबा’ गाम-घरक किछु शब्द (ककनी, कुरकुटिया, ढौहरी, दोदब आदि), किछु ध्वनि, भिन्न-भिन्न तरहक उच्चारण आ वर्तनीक विविधता कोसी-पश्चिमक किछु पाठक केँ अपरिचित भनहि लगनि, आँकड़ जकाँ प्राय: नइँ लगबाक चाहियनि किएक तँ कोसी पर नव बनल पुल चालू भ’ गेल अछि...जाति मे भागनि आकि अजाति मे, बेटी-बहिन घर-घर सँ भागबे करतनि...ताग आ पाग धयले रहि जयतनि!...नव-नव बाट आ पुल आकर्षक होइत छै! से जनै अछि छान-पगहा तोड़बा लेल आकुल-व्याकुल नव तुरक मैथिल कन्या! हँ, पंडिजी बुझैतो तकरा स्वीकार’ नइँ चाहैत छथि।
उपन्यासक अन्तिम पाँति पूरा क’ हम विश्रामक मुद्रा मे रही...कि पंडीजी, माने पंडित भवनाथ मिश्र, आबि गेलाह। पुछलियनि—पंडित कका, अंकुरक प्रश्नक उत्तर के देत? कहू, ओकर कोन अपराध?... पंडित कका किछु ने बजलाह, बौक बनि गेलाह!...मुदा हुनका आँखि मे अनेक तरहक मिश्रित क्रोध छलनि! ओ पहिने जकाँ दुर्वासा नइँ भ’ पाबि रहल छलाह, मुदा भाव छलनि—खचड़ै करै छह! हमरा नाँगट क’क’ राखि देलह आ आबो पुछै छह...जाह, तोरा कहियो चैन सँ नइँ रहि हेतह!...
अंकुरक छाती पर जे दाग अछि, तेहन-तेहन अनेक दाग सँ एहि लेखकक गत्र-गत्र दागबाक आकांक्षी पंडित समाज आ विज्ञ आलोचक लोकनि लग निश्चये अंकुरक सवालक कोनो उत्तर नइँ हेतनि। सुभद्राक तामस आ ओकर नजरिक दापक दाग सेहो हुनका लोकनिक आत्मा पर साइत नहिए बुझाइत हेतनि!... मुदा सुधी पाठक, दलित समाज सँ आगाँ आबि रहल नवयुवक लोकनि आ स्त्रीगण लोकनिक नव पीढ़ी जरूर एकर उत्तर तकबाक प्रयास करत, से हमरा विश्वास अछि।
—गौरीनाथ
 01 सितम्बर, 2012